गुरुवार, 5 मई 2016
प्रेरक कथा - जैसा बोल वैसा मोल
कहानी का अंश... एक राजा अपने अनुचरों के साथ वन विचरण के लिए निकला। मार्ग में उसे तीव्र प्यास लगी। राजा ने देखा कि पास ही एक झोंपड़ी थी, जिसके बाहर पानी से भरा एक मटका रखा था। राजा ने एक अनुचर को उसमें से पानी लाने को कहा।
राजाज्ञा पाकर अनुचर वहां गया और झोंपड़ी मेें रहने वाले अंधे व्यक्ति से बोला, ‘अरे, ओ अंधे! एक गिलास पानी दे।’
अंधा व्यक्ति बोला, ‘तुझ जैसे सिपाही को मैं पानी नहीं पिलाऊंगा।’ और वह खाली हाथ लौट आया।
राजा ने दूसरे अनुचर को भेजा तो उसने भी वैसा ही व्यवहार किया। ‘तुझ जैसे सेनानायक को मैं पानी नहीं पिलाऊंगा।’ फलतः वह भी खाली हाथ लौट आया।
जब दोनों खाली हाथ लौट आए, तब राजा स्वयं उस अंधे व्यक्ति के पास पहुंचा और विनम्रतापूर्वक प्रणाम कर बोला, ‘महानुभाव, मुझे बड़ी तेज प्यास लगी है, गला सूखा जा रहा है। आपकी बड़ी कृपा होगी, मुझे एक गिलास पानी पिला दें।’
उस अंधे ने राजा को सम्मानपूर्वक अपने निकट बैठाकर कहा, ‘आप जैसे विनयशील लोगों का ही राजा तुल्य सम्मान उचित है। आपके लिए पानी तो क्या शरीर को भी समर्पित कर सकता हूं।’
इतना कहकर उसने राजा को पानी पिलाया। जब राजा तृप्त हो गया तब उसने उस अंधे व्यक्ति से पूछा, ‘महाशय, आपने मुझसे पहले आए उन दोनों को कैसे पहचाना कि उनमें एक सिपाही व एक सेनानायक था और आपने राजा के रूप में मुझे कैसे पहचाना?’
अंधा व्यक्ति बोला, ‘बोलने के तरीके से किसी भी व्यक्ति का स्तर स्वतः ही निर्धारित हो जाता हे कि वह कुलीन है या नीच।’ इस कहानी का आनंद ऑडियो की मदद से लीजिए...
लेबल:
कहानी,
दिव्य दृष्टि
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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