मंगलवार, 3 मई 2016
बाल कहानी - शेखचिल्ली और परियाँ
कहानी का अंश... शेखचिल्ली की बेरोजगारी से उसकी मां तंग आ गई थी। घर पर पड़े-पड़े राशन तोड़ने के सिवा शेखचिल्ली को कोई काम न था। घर से बाहर निकलता तो गांव वाले उसकी मजाक बनाते थे।
एक दिन उसकी मां ने शेखचिल्ली से कहा- यों निठल्लों की तरह दिन भर पड़े रहने से अच्छा है कि शहर जाकर कोई नौकरी खोज। क्या पता कोई नौकरी मिल ही जाए!
अगले दिन शेखचिल्ली की मां ने शेखचिल्ली के लिए एक कपड़े में चार रोटी और प्याज बांध दी और शेखचिल्ली को काम खोचने के वास्ते चलता कर दिया।
अब शेखचिल्ली ठहरे पूरे शेखचिल्ली। कामधाम तो क्या खोजते, रास्ते में एक जंगह पड़ा, वहीं एक पेड़ के नीचे सुस्ताने लगे।
नींद की एक झपकी निकालने के बाद उसने सोचा कि चलो रोटी खा ली जाए। शेखचिल्ली को नजदीक ही एक कुआं नजर आया। शेखचिल्ली जाकर सीधे उस कुएं की दीवार पर बैठ गया और कपड़े में बंधी रोटी और प्याज को खोला।
रोटियां देखकर शेखचिल्ली जोर से बोला- एक खाऊं, दो खाऊं, तीन खाऊं या चारों खा जाऊं...
उस कुएं के अंदर चार परियां रहती थीं। उन्होंने जैसे ही शेखचिल्ली की आवाज सुनी, वो डर गईं, उनको लगा कि आज कोई उनको खाने आ गया है।
डर के घबराई परियां कुएं से बाहर निकल आईं और बोलीं- नहीं नहीं हमें मत खाओ, हमें मत खाओ, हम तुम्हारी मदद करेंगी, तुम जो मांगोगे वही तुमको देंगी। शेखचिल्ली को कुछ समझ नहीं आया कि आखिर हुआ क्या? फिर उसने अपनी चार रोटियों से उन परियों की संख्या को जोड़ा और तब उसको समझ आया कि मामला क्या है।
खैर, उसको लगा कि परियां जब उसकी मदद करने को तैयार हैं तो क्यों न इन्हीं से कुछ मदद मांग ली जाए।
शेखचिल्ली ने कहा कि तुम सब मेरी क्या मदद कर सकती हो, मैं तो बेरोजगार हूं, मेरे पास न धन है और न नौकरी। घर में गरीबी का आलम है।
परियों ने कहा- कोई बात नहीं है हम तुमको एक ऐसी थैली दे देते हैं जिसमें से तुम जब चाहोगे तब पैसे निकाल पाओगे।
उनमें से एक परी ने अपनी छड़ी घुमाई और एक खूबसूरत मखमली थैली शेखचिल्ली को दे दी।
देखने में वो थैली खाली लग रही थी, लेकिन जैसे ही शेखचिल्ली ने उसमें हाथ डाला उसमें से उसे सोने की मोहरें मिलीं।
शेखचिल्ली बहुत खुशी-खुशी वापस अपने गांव लौटने लगा। लौटते वक्त रास्ते में अंधेरा हो गया।
उसने देखा कि नजदीक ही एक छोटा सा गांव है। वो उस गांव में गया और एक व्यापारी के घर पहुंचा। शेखचिल्ली ने उस व्यापारी से रात भर रुकने की जगह मांगी।
व्यापारी ने कहा- मेरा काम धंधा सब चैपट पड़ा हुआ है। मैं तुमको रुकने की जगह तो दूंगा, लेकिन बदले में तुम मुझे क्या दोगे।
शेखचिल्ली ठहरे पूरे शेखचिल्ली, फट से अपनी थैली व्यापारी को दिखाई और पूछा- तुमको कितना पैसा चाहिए, मैं तुमको उतना पैसा दे सकता हूं। मेरे पास ये जादूई थैली है। इसमें से जितने चाहो उतने पैसे निकाल सकते हो।
व्यापारी ने शेखचिल्ली से दस मोहरें मांगीं। शेखचिल्ली ने झट से अपनी थैली में से दस मोहरें निकाल कर दे दीं।
व्यापारी ने शेखचिल्ली को ठहरने की जगह दे दी। और शेखचिल्ली जाकर कमरे में पसर गया। लेकिन इधर व्यापारी के मन में लालच आ गया। कहानी में आगे क्या हुआ, परियों ने शेखचिल्ली की मदद किस तरह से की, उस लालची व्यापारी का क्या हुआ, क्या शेखचिल्ली और उसकी माँ की गरीबी दूर हुई या नहीं, ये जानने के लिए ऑडियो की सहायता लीजिए...
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दिव्य दृष्टि,
बाल कहानी
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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