सोमवार, 23 मई 2016

गोपालदास नीरज की कविता

कविता के बारे में--- छिप-छिप अश्रु बहाने वालों! मोती व्यर्थ लुटाने वालों! कुछ सपनों के मर जाने से जीवन नहीं मरा करता है। सपना क्या है? नयन सेज पर, सोया हुआ आँख का पानी, और टूटना है उसका ज्यों, जागे कच्ची नींद जवानी, गीली उमर बनाने वालों! डूबे बिना नहाने वालों! कुछ पानी के बह जाने से सावन नहीं मरा करता है। माला बिखर गई तो क्या है, खुद ही हल हो गई समस्या, आँसू गर नीलाम हुए तो, समझो पूरी हुई तपस्या, रूठे दिवस मनाने वालों! फटी क़मीज़ सिलाने वालों! कुछ दीपों के बुझ जाने से आँगन नहीं मरा करता है। खोता कुछ भी नहीं यहाँ पर, केवल जिल्द बदलती पोथी। जैसे रात उतार चाँदनी, पहने सुबह धूप की धोती, वस्त्र बदलकर आने वालों! चाल बदलकर जाने वालों! चंद खिलौनों के खोने से बचपन नहीं मरा करता है। कविता का आनंद ऑडियो की मदद से लीजिए...

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