सोमवार, 2 मई 2016
3 मई पुण्यतिथि पर विशेष - बहुत कुछ कहने को बेताब वो नरगिसी आँखें…
लेख का अंश...
अल्लामा इक़बाल का शेर है:
हज़ारो साल नरगिस अपनी बेनूरी पर रोती है,
बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदावर पैदा।
मालूम नहीं कि शायर इकबाल को ऐसा क्या सूझा कि अपनी शायरी में नरगिस को ऐसा दर्द दे दिया लेकिन हमारी फिल्मी जगत की तारिका नरगिस भी अपने अलग-अलग फिल्मी किरदारों में ऐसे ही दर्द को बयां करती मालूम होती थी। उसकी नरगिसी आँखें हर पल बहुत कुछ कहने को बेताब रहती थीं। एक दर्द, एक तड़प, एक कसमसाहट उन झील-सी गहरी आँखों में दिखाई देती थी। जज्बातों का एक ऐसा तूफान या ज्वार जो सारे बंधन को तोड़कर उफान भरने को बेताब था… ऐसी थीं नरगिस की नरगिसी आँखें…। जिसका जादू महज पाँच वर्ष की उम्र से ही फिल्मी पर्दे पर नजर आने लगा था।
भारतीय हिंदी फिल्मों की खूबसूरत अदाकारा नरगिस का जन्म 1 जून 1929 को कोलकाता में हुआ था। पिता उत्तमचंद मूलचंद, रावलपिंडी से ताल्लुक रखते थे और माता जद्दनबाई एक हिंदुस्तानी क्लासिकल गायिका थीं। नरगिस का असली नाम फातिमा रशीद था। घर का माहौल सुर-संगीत एवं फिल्म निर्माण से सजा हुआ था। फिल्म निर्मात्री एवं गायिका माँ जद्दनबाई की पुरजोर चाहत ने नन्हीं फातिमा को पाँच साल की उम्र में ही चकाचौंध से भरी फिल्मी दुनिया का दरवाजा दिखा दिया। सन् 1935 में बनीं उनकी फिल्म ‘तलाश-ए-हक़’ में नन्हीं फातिमा बेबी नरगिस के रूप में पर्दे पर उतरी। धीरे-धीरे बेबी शब्द पीछे छूट गया और खूबसूरत नरगिस सामने आ गई। बचपन से ही फिल्मी सफर शुरू करने वाली इस अदाकारा की आँखों में भी बचपन में एक सपना पल रहा था, सफल अभिनेत्री बनने का सपना नहीं, बल्कि एक डॉक्टर बनने का सपना। हाँ, ये सच है। नरगिस डॉक्टर बनना चाहती थी।
एक दिन उनकी मां ने उनसे स्क्रीन टेस्ट के लिए फिल्म निर्माता एवं निर्देशक महबूब खान के पास जाने को कहा. चूंकि नरगिस अभिनय के क्षेत्र में जाने की इच्छुक नहीं थीं, इसलिए उन्होंने सोचा कि अगर वह स्क्रीन टेस्ट में फेल हो जाती हैं तो उन्हें अभिनेत्री नहीं बनना पड़ेगा. स्क्रीन टेस्ट के दौरान नरगिस ने अनमने ढंग से संवाद बोले और सोचा कि महबूब खान उन्हें स्क्रीन टेस्ट में फेल कर देंगे. लेकिन उनका यह विचार गलत निकला. चौदह वर्ष की कमसीन उम्र में निर्देशक महबूब खान ने अपनी फिल्म 'तकदीर' के लिए उन्हें मोतीलाल की हीरोइन के तौर पर चुन लिया. फिल्म 1943 में रिलीज हुई।
फिल्म ‘तकदीर’ के बाद से तकदीर ऐसी मेहरबान हुई कि लगभग चार दशक तक वह अपने बहुआयामी अभिनय से दर्शकों का दिल जीतती रही। दिलों पर हुकूमत करती रही। नरगिस के बारे में ऐसी ही कुछ दिलचस्प जानकारियाँ इस ऑडियो की मदद से लीजिए...
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आलेख,
दिव्य दृष्टि
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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