गुरुवार, 21 अप्रैल 2016
बाल कहानी - मेरी चमचमाती साइकिल
लेखिका उपासना बेहार की कहानी का कुछ अंश...
राहूल एक प्यारा सा बच्चा था जो कक्षा 7 में पढ़ता था। एक दिन उसके टीचर ने बताया कि स्कूल में 1 माह बाद खेलकूद की प्रतियोगिता होने जा रही है और जो बच्चा दौड़ में प्रथम आयेगा उसे एक साइकिल ईनाम में मिलेगी। यह सुन कर राहूल खुश हो जाता है। उसका बहुत दिनों से मन था कि उसके पास भी एक साइकिल होती जिससे वह रोज समय पर स्कूल पहुँच पाता। असल में राहूल रोज पैदल ही अपने घर से स्कूल जाता था, ये दूरी ज्यादा होने के कारण कई बार वह थक जाता था तो रास्ते में सुस्ता लेता जिससे उसे स्कूल पहुँचने में देरी हो जाती थी और उसे टीचर से डांट खानी पड़ती। राहूल सोचने लगा कि अगर वह इस दौड़ प्रतियोगिता को जीत लेता है तो ईनाम में उसे साइकिल मिल जायेगी और वो रोज समय पर स्कूल आ सकता है। उसने मन ही मन ठान लिया कि यह दौड़ प्रतियोगिता जीतने के लिए वह बहुत मेहनत और अभ्यास करेगा। यह बात वह अपने मां और पिता जी को बताता है। वो भी राहूल का हौसला बढ़ाते हैं।
दूसरे दिन ही वह स्कूल पहुंचकर खेलकूद के सर से मिलता है। नसीम सर बच्चों के चहेते सर है क्योंकि वो बच्चों से दोस्तों जैसा व्यवहार करते हैं। राहूल को भी वो अच्छे लगते हैं। जब भी स्कूल में सर से मुलाकात होती तो वो उससे पढ़ाई के बारे में जरुर पूछते और हमेशा कहते ‘जो भी काम करना पूरी तरह से मन लगा कर करना। अधूरे मन से कोई भी काम सही तरीके से नहीं होता है।’ राहूल उनके पास जा कर अपनी इच्छा बताता है, उनसे मदद मांगता है और कहता है ‘सर अगर आप मुझे अभ्यास करायेगें तो मैं यह दौड़ जरुर जीत लूंगा, आप जैसा बोलेगें मैं वैसा करता जाऊंगा। मुझे अपने आप पर विश्वास है कि मैं यह प्रतियोगिता जीत लूंगा।’ नसीम सर उसके आत्मविश्वास को देख कर खुश होते हैं और कहते हैं ‘राहूल तुम्हें इस प्रतियोगिता को जीतने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी। पूरी जान लगानी होगी।’ ‘सर मैं मेहनत करने के लिए तैयार हूँ।’ यह बोल कर राहूल निश्चय से भरा अपने घर की ओर चल पड़ा।
राहूल के प्रतियोगिता जीतने के सपने को पूरा करने के लिए उसके माता और पिता भी जुट जाते हैं। मां उसे रोज सुबह 5 बजे उठाने लगती हैं। राहूल के पिता रोज सुबह उठकर उसे खेल मैदान ले जाने लगते हैं। जहाँ वह नसीम सर के साथ जमकर दौड़ का अभ्यास करता और जब कभी थक कर चूर हो जाता तो उसे वह चमचमाती साइकिल दिखायी देने लगती जो प्रतियोगिता जीतने के बाद मिलने वाली है, तो उसकी थकान गायब हो जाती और फिर से वह जोश के साथ अभ्यास में जुट जाता। आगे की कहानी जानने के लिए ऑडियो की मदद लीजिए...
लेबल:
दिव्य दृष्टि,
बाल कहानी
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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