डॉ. महेश परिमल
हाल ही में एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए
सुप्रीमकोर्ट ने बैंकों से कहा है कि कर्ज से लदे किसानों पर बैंकें अत्याचार करती
हैं, किंतु उद्योगपतियों पर
कार्रवाई करने में हिचकिचाती है। यह गलत है। इस तरह की परंपरा बंद होनी चाहिए।
आखिर बैंकें कर्ज लेने वाले व्यापारियों पर इतनी मेहरबान क्यों हैं? विजय माल्या को कर्ज देकर बैंकें बदनाम हो गई
हैं। बैंकों ने जिस तरह से आपाधापी में व्यापारियों को कर्ज दिया है, उससे उसने अपने ही पांव पर कुल्हाड़ी मार ली है।
सुप्रीमकोर्ट ने बैंकों को काफी फटकारा भी है। खूब लताड़ भी लगाई है। पर इससे
बैंकों को किसी तरह का फर्क नहीं पड़ा है। हमारे देश में बैंकों की व्यवस्था जिस
तरह से की गई है, उससे यह संदेश जाता है
कि जब सरकारी बैंक ग्राहकों को लूटने से बाज नहीं आती, तो निजी बैंक ऐसा क्यों नहीं करे? निजी बैंकें अपनी मनमानी कर रही हैं। उन्हें यह
अच्छी तरह से पता है कि सरकार की अधीन जो बैंकें हैं, वह भी मनमानी ही कर रही हैं। जब सरकार अपनी ही
बैंकों पर लगाम नहीं कस सकती, तो हमें चिंता करने की
क्या आवश्यकता है?
देश के शीर्ष पर रहने वाली बैंकें जब क्रेडिट
कार्ड के नाम पर अपने ग्राहकों को ठग रही है, उनके साथ धोखाधड़ी कर रही है,तो रिजर्व बैंक मूक रहकर तमाशा देख रही है। ये मामला जब बहुत ही
ज्यादा गंभीर हो जाएगा, तब रिजर्व बैंक जागेगी।
पर तब तक न जाने कितने उपभोक्ता ठगे जा चुकेंगे। इनसे ऐसा लगता है कि रिजर्व बैंक
एक ऐसा डॉगी है, जो न भौंक सकता है और न
ही किसी को काट सकता है।
उपभोक्ताओं से बैंके विभिन्न शुल्क के नाम पर हर महीने 10 प्रतिशत ब्याज वसूल करती है।
बैंकें यह अच्छी तरह से जानती हैं कि भारतीय कभी भी समय पर भुगतान नहीं कर पाते हैं।
उनकी इस मानसिकता का ये बैंकें पूरा फायदा उठाती हैं। सरकार बैंकों को कुछ कह नहीं
सकती। क्योंकि यह व्हाइट कॉलर सिस्टम रिजर्व बैंक से जुड़े हुए हैं। कुछ लोग
बैंकों से लोन के नाम पर करोड़ो रुपए ले लेते हैं। जब वे भुगतान नहीं कर पाते,
तो बैंकों का जवाब होता है कि हमने तो उनके पेपर्स देखकर ही लोन
दिया था। ऐसी भूल किसी एक बैंक ने नहीं, बल्कि कई बैंकों ने
बार-बार की है। कुछ समय बाद बैंकों द्वारा रसूखदारों को लोन देने का घोटाला भी
सामने आएगा, यह तय है।
क्रेडिट कार्ड हेकिंग में भी बैंकों का स्टाफ सम्बद्ध है, यह अभी तो साफ नहीं हो पाया है,
पर बाद में यह घोटाला भी सामने आएगा। कुछ लोगों के क्रेडिट
कार्ड से बाहर ही बाहर धनराशि निकाल ली जाती है, यह भी किसी
एक व्यक्ति के द्वारा संभव नहीं है। लोन में बैंक का स्टाफ कितना लीन है, जब यह जानकारी सामने आएगी, तब शायद रिजर्व बैंक की
आंखें खुलेंगी। आखिर रिजर्व बैंक किसलिए सुविधाएं देने के नाम पर इस सिस्टम
को लूट का संसाधन बनने दे रही है। शायद उसे पता ही नहीं है कि आज उसके नाक के नीचे
किस तरह लूट चल रही है। रिजर्व बैंक इस समय गांधी के तीन बंदरों की तरह हो गई है।
दुर्भाग्य इस बात का है कि सरकार को भी इस लूट की जानकारी है, पर वह भी इस दिशा
में अपनी आंखें बंद किए हुए बैठी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिस मध्यम वर्ग और
गरीब वर्ग के सहारे सत्ता पर आए हैं, वही वर्ग इस खुली लूट का अधिक शिकार हो रहा
है। सरकार विदेशी बैंकों को अपने यहां लाने की एड़ी-चोटी का जोर लगा रही है, पर
अपने ही देश की बैंकों द्वारा की जा रही लूट की ओर ध्यान नहीं दे रही है।
यदि कोई फाइनेंस कंपनी लोगों को 10 प्रतिशत से अधिक ब्याज वसूलती
होती, तो उस कंपनी से जुड़े सभी लोगों को जेल की हवा खानी पड़ती। पर जब यही काम
सरकारी बैंकें तगड़ा ब्याज खुले आम ले रहीं हैं और उसकी वसूली के लिए विशेष रूप से
प्रशिक्षित लोगों को रखती है। तब सरकार कुछ नहीं कर पाती। इस तरह से दादागिरी से
धनराशि की वसूली पर अब तक ध्यान नहीं दिया गया, पर जब अदालत ने इस ओर ध्यान दिया,
तो सभी चौंक गए। जब इस तरह की हरकत बंद हुई, तो बैंकों ने टेलिफोन ऑपरेटरों की
पूरी फौज खड़ी कर दी, जो सुबह से लेकर शाम तक वसूली के लिए तगादा करने लगी। इस
कार्य को करने के लिए सरकार ने दूरंदेशी भी नहीं दिखाई। जिन ऑपरेटरों को यह काम
सौंपा गया है, उन्हें यह भी नहीं पता कि लोन लेने वाला अंग्रेजी जानता है या नहीं,
उसे हिंदी आती है या नहीं। यहां तो ऐसा हो रहा है कि जिसे अंग्रेजी नहीं आती, उसे
अंग्रेजी में ही उगाही के लिए कहा जा रहा है। जो जिस भाषा का जानकार हो, उसे उसी
भाषा में सम्प्रेषण किया जाए, तो अपनी बात आसानी से कही जा सकती है। सही सम्प्रेषण
के अभाव उपभोक्ताओं का समय की बरबाद हो रहा है।
अब समय आ गया है कि क्रेडिट कार्ड के नाम पर भोली-भाली जनता को
लूटने वाली बैंकों के खिलाफ सख्त कदम उठाए जाएं। विजय माल्या जैसे मोटे आसामी के
सामने लाचार बैंकें छोटे ग्राहकों पर कहर बनकर टूट रही हैं। बैंक यह सोच रही हैं
कि मध्यम वर्ग को लूटने का अधिकार केवल उसके पास है। इससे रसूखदारों को यह अधिकार
मिल जाता है कि वे भी बैंकों को लूट लें। विजय माल्या के अलावा इस देश में ऐसे
बहुत से लोग हैं, जिन्होंने बैंकों को चूना लगाने में देर नहीं की। रिजर्व बैंक की
ढीली नीति के कारण क्रेडिट कार्ड के जरिए यह लूट जारी है। एक तरफ क्रेडिट कार्ड
बहुत ही उपयोगी है, पर इस पर शुल्क वसूल कर खुले आम अपने उपभोक्ताओं को लूट रही
है। वित्त मंत्रालय की ढीली नीतियों के कारण ही इस तरह की लूट चल रही है। इस तरह
से क्रेडिट कार्ड जैसी लोकोपयोगी योजना के प्रति लोगों में अविश्वास जाग रहा है।
सरकार की नीयत सामने आ रही है। आखिर 10-10 प्रतिशत ब्याज वसूलने का मतलब क्या है?
यह तो हमें पठानी ब्याज की बात याद दिलाती है।
प्रजा लाचार है, अब तो क्रेडिट कार्ड की हर जगह आवश्यकता पड़ रही
है। इन हालात में सरकार को रिजर्व बैंक के प्रति सख्ती से पेश आना चाहिए। ताकि
अन्य बैंकें भी सचेत हो जाएं। इस तरह की लूट तो बंद होनी ही चाहिए। वरना लोगों का
बैंक से विश्वास ही उठ जाएगा।
डॉ. महेश परिमल
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