गुरुवार, 21 अप्रैल 2016
बाल कहानी - बादल, बिजली और बारिश
कहानी का कुछ अंश...
शीर्षक पढ़कर आप सोच रहे होंगे कि यह किसी फिल्म की कहानी तो नहीं है ना। नहीं, न तो यह किसी फिल्म की कहानी है और न ही किसी छबिगृहों के नाम हैं। मैं तो उस बादल, बिजली और बारिश की बात कह रही हूँ, जिनका सामना हमें इन दिनों करना ही पड़ रहा है। आओ इन तीनों भाई-बहनों के बारे में कुछ जानने का प्रयास करें।
रविवार का दिन, यानि मौज-मस्ती और छुट्टी का दिन! एकाएक आकाश में बादल घिर आए। सूरज बादलों में छिप गया। चारों ओर घना अंधकार छा गया। भरी दोपहर थी, उसके बावजूद ऐसा लग रहा था, मानों शाम हो गई हो। अंशुल घर के अहाते में ही था, कि माँ ने आवाज लगाई- अंशुल, अंदर आ जाओ। अभी बारिश शुरू हो जाएगी। देखो, कैसे काले बादल घिर आए हैं।
इतने में बौछारें शुरू हो गई। छोटी-छोटी बूँदों ने बड़ी बूँदों का रूप ले लिया। थोड़ी देर में ही मूसलधार बारिश शुरू हो गई। साथ ही आकाश में बादलों की गड़गड़ाहट भी होने लगी। ऐसी तेज आवाज मानों आकाश अभी फट पड़ेगा।
घड़ घड़ धड़ाम धम्म! धड़ाम धम्म!
आकाश में खुली आँखों से देखना मुश्किल हो गया। कुछ देर पहले जो खुला आकाश था, वही अब पानी का प्रपात बना हुआ था। बिजली का चमकना ऐसे लग रहा था मानों आकाश में हजारों वॉल्ट के अनेक बल्ब जल गए हों। साथ ही बादलों की तेज गड़गड़ाहट! मानों आकाश फट कर अभी धरती पर गिर पडे़गा!
ये सब देखना अच्छा भी लग रहा था और भयभीत भी कर रहा था। पिताजी भी बदले मौसम का नजारा देखने के लिए खिड़की के पास आकर खड़े हो गए। खिड़की के बाहर हाथ निकालकर वे बारिश का मजा लेने लगे। उन्हें ऐसा करते देख मेरी भी हिम्मत बढ़ी, मैं भी उनके पास आकर खड़ा हो गया। बारिश की बूँदें हथेली पर सहेजने के लिए हाथ बाहर निकाला ही था कि जोर से बिजली कड़की और मैं भीतर तक काँप गया।
पिताजी ने हँसते हुए मेरे कँधे पर हाथ रखा। मैंने पापा से पूछा-पापा, आकाश में बिजली कैसे चमकती है? पिताजी बोले- अंशुल, तुम जरा अपनी दोनों हथेलियों को आपस में जोर से रगड़ो तो भला। अंशुल ने वैसा ही किया, उसकी दोनों हथेलियाँ गरम हो गई। पिताजी ने समझाया- हथेली घिसने से घर्षण हुआ और एक प्रकार की बिजली पैदा हुई। आकाश में बादल हैं, वे वैसे तो रूई की फाहे की तरह नरम हैं। ऊपर हवा भी है, ऐसे में हवा के साथ दौड़ते-भागते बादल एक-दूसरे से टकराते हैं, जिस तरह से तुम्हारी हथेली के घर्षण से गरमाहट के साथ बिजली उत्पन्न हुई, उसी तरह बादलों के टकराने से बिजली उत्पन्न होती है।
बिजली की बात होते ही घर की बिजली गुल हो गई। तब माँ ने माचिस ली और उसमें से दियासलाई निकालकर उसे माचिस से लगे फास्पोरस वाली जगह पर रगड़ा, जिससे दियासलाई जल उठी। माँ ने उससे मोमबŸाी जला ली। इस पर पिताजी ने अंशुल को बताया कि अभी तुमने देखा कि तुम्हारी माँ ने किस तरह माचिस की तीली को रगड़कर आग जलाई। ठीक इसी तरह जब बादल आपस में रगड़ खाते हैं, तब उसमें बिजली उत्पन्न होती है। तब अंशुल ने कहा- पिताजी क्या यह बिजली जमीन तक आ पाती है, क्या यह हमारे घर के भीतर भी आ सकती है? हाँ कई बार यह हमारे घर के अंदर तक आ सकती है- पिताजी ने कहा। आगे क्या हुआ जानने के लिए ऑडियो की मदद लीजिए...
लेबल:
दिव्य दृष्टि,
बाल कहानी
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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