बुधवार, 20 अप्रैल 2016
कहानी - ढलता सूरज - डॉ. विजय लक्ष्मी राय
कहानी का कुछ अंश...
रश्मि का शरीर ज्वर से तप रहा था । वह तेज बुखार में बार-बार करवटें बदल रही थी । आँखों में बेहोशी का नशा चढ़ता जा रहा था । इतने में दरवाजे की घंटी बजी । आँखें खोलकर दरवाजे की तरफ देखा । पलकें खुलने को तैयार नहीं थीं । मुश्किल से पलंग की पट्टी पकड़कर वह उठी, दीवार का सहारा लेते हुए दरवाजे की सिटकनी खोली । देखा पड़ोसिन शीतल थी । बिना कुछ उससे बात किए वह लड़खड़ाते कदमों से वापिस पलंग पर जाकर लुढ़क गई । शीतल घबड़ाकर रश्मि के पलंग के पास आई । क्या बात है रश्मि?' रश्मि बुखार की तीव्रता के कारण बोलना चाहकर भी नहीं बोल पायी ।
' घर में कोई नहीं है, क्या? ' भाई साहब कहाँ हैं? रश्मि, रश्मि, रश्मि. । ' पर रश्मि तो बेहोश हो चुकी थी ।
शीतल दौड़कर घर गई और अपने पति दिनेश को बुला लाई । दिनेश ने रश्मि की हालत देखी तो वह शीतल को वहीं रुकने का संकेत कर डॉक्टर को बुलाने चला गया । दिनेश के जाते ही शीतल की निगाह दीवाल घड़ी पर टिक गई जिसने अभी-अभी रात्रि के आठ बजने की सूचना दी थी । शीतल को समझ नहीं आ रहा था कि अचानक रश्मि को क्या हो गया, सुबह तो बिलकुल स्वस्थ थी । फिर अचानक घर में उसके पति का न होना और उसका तेज बुखार में तपना । शीतल काफी माथा-पच्ची करने पर भी किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पायी तो दिमाग को ढीला छोड़ पति दिनेश एवं डॉक्टर के आने की राह देखने लगी ।
रश्मि झाँसी में पंजाब नेशनल बैंक में क्लर्क के पद पर कार्यरत थी । उसका पूरा परिवार बबीना में रहता था जिसमें सास, ससुर, देवर और ननद सभी थे । पति आलोक इंजीनियर थे उनकी पोस्टिंग भी झाँसी में थी । लेकिन वह अक्सर बबीना जाते रहते थे, कई बार वहीं रुक जाते थे । रश्मि के चार साल की बेटी और दो साल का बेटा था । अभी चार- छह दिन पहले ही वह बच्चों को दादा-दादी के पास झाँसी छोड्कर आई थी ।
दरवाजे पर आहट होते ही शीतल ने दरवाजा खोला । दिनेश डॉक्टर के साथ सामने खड़ा था । वह बोली- आईये डॉ. साहब जल्दी आईये । देखिये रश्मि को क्या हो गया । यह बोलती भी नहीं बेहोश पड़ी है । डॉ. ने कहा- ' आप घबड़ाईये मत, मैं अभी देखता हूँ क्या बात है । ' डॉ. ने रश्मि का चैकअप किया और कहा- ' कोई विशेष बात नहीं है, यह तेज बुखार के कारण बेहोश हैं । इन्हें कब से बुखार आ रहा है? ' सुबह 1 ०- 11 बजे तो यह बिलकुल ठीक थीं ।
' आप इनकी. । '
' मैं इनकी मित्र हूँ पड़ोस में रहती हूँ । यह मेरे पति दिनेश हैं ।
' फिर इनके घर में इस समय ' कोई नहीं है । सुबह इनके पति थे । लेकिन अभी नहीं हैं । रश्मि से भी कोई बात नहीं हो पाई कि उससे कुछ पूछ सकूं । '
' चिंता की कोई बात नहीं है । आप अनके सर पर ठंडे पानी की पट्टियां रखिये, थोड़ा बुखार कम होगा, जिससे यह होश में आ जायेंगी । मैं दवा लिख देता हूं होश में आते ही इन्हें खिला दीजियेगा । '
एक इंजेक्शन लगाकर डॉ. साहब चले गये ।
शीतल ने दिनेश की ओर देखा, आँखों में एक ही सवाल था अब क्या करें? दिनेश समझ गया बोला- ' देखो शीतल इन्हें अकेला छोड़ना ठीक नहीं, तुम यहीं बैठकर इनके सिर पर ठंडे पानी की पट्टियाँ रखो, मैं दवा लेकर आता हूं । '
शीतल को रश्मि के सर पर पानी की पट्टियां रखते हुए करीब दो घंटे हो गये लेकिन रश्मि के बुखार में कोई अंतर नहीं आ रहा था । केवल दो मिनिट के लिए रश्मि को होश आया तो उसने शीतल से टूटे-फूटे शब्दों में केवल इतना बताया कि उसका उसके पति से झगड़ा हो गया था और वह बबीना चले गए हैं । इतना कहकर वह फिर बेहोश हो गई ।
शीतल यह तो जानती थी रश्मि और आलोक का आपस में झगड़ा तो होता रहता है, पर आज ऐसी क्या बात हो गई कि रश्मि की हालत इतनी खराब हो गई ।
अागे की कहानी ऑडियो की मदद से सुनिए...
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दिव्य दृष्टि
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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