शुक्रवार, 22 अप्रैल 2016
बाल कहानी - बादल और झरना
कहानी का कुछ अंश...
एक था बादल। छोटा-सा बादल। एकदम सूखा और रूई के फाहे सा कोमल। उसे लगता - यदि मैं पानी से लबालब भर जाऊँ, तो कितना मजा आए! फिर मैं धरती पर बरसूँगा, मेरे पानी से वृक्ष ऊगेंगे, पौधे हरे-भरे होंगे, सारी धरती पर हरियाली छा जाएगी... खेत अनाज की बालियों से लहलहाएँगे... ये सभी देखने में कितना अच्छा लगेगा! लेकिन इतना पानी मैं लाऊँगा कहाँ से?
एक बार वो घूमते-घूमते पहाड़ पर पहुँचा। वहाँ उसे एक झरना बहता हुआ दिखाई दिया। उसे बहता झरना देखना बहुत अच्छा लगा। उसे लगा क्यों न मैं इस झरने से दोस्ती करूँ? हो सकता है वह मुझे थोड़ा-सा पानी दे दे। वह झरने के नजदीक आया।
- प्यारे झरने, क्या तुम मेरे दोस्त बनोगे?
- मैं तो सभी का दोस्त हूँ, झरना बोला।
- वो तो ठीक है, पर आज से हम दोनों पक्के दोस्त।
झरना भी खुष हो गया। बादल से हाथ मिलाते हुए बोला- ठीक है, पर मेरी एक षर्त है। तुम्हें मेरे साथ ही रहना होगा। मुझसे रोज बातें करनी होगी। कहीं छिप मत जाना। बोलो है मंजूर?
- हाँ, मुझे मंजूर है। मुझे तुम और तुम्हारी दोस्ती दोनों पसंद है।
फिर तो झरना और बादल दोनों पक्के दोस्त बन गए। झरना कूदते-फाँदते नीचे की ओर बहता, तो बादल भी उसके साथ दौड़ने की कोषिष करता। कभी-कभी वो झरने के साथ दौड़ लगाने में हाँफ जाता, तो झरना उसे हाथ पकड़कर खींच लेता। दोनों मिल कर देर तक खूब बातें करते। आसपास ऊगे फूल, पौधे, बेेल, पेड़ सभी उनकी बातें सुनते। उनकी प्यार भरी बातें उन्हें बहुत अच्छी लगतीं।
एक दिन बादल ने कहा- प्यारे दोस्त, मुझे तुमसे कुछ चाहिए।
झरना बोला- कहो, क्या चाहिए? हम तो पक्के दोस्त हैं। तुम जो कहोगे, वो मैं तुम्हें दूँगा।
बादल ने कहा- मैं एकदम सूखा हूँ। मेरे भीतर का खालीपन मुझे उदास कर देता है। क्या तुम मुझे अपना पानी दे सकते हो?
झरना बोला- इसमें क्या है? ये तो तुम्हें दे सकता हूँ, पर कुछ दिन ठहर जाओ, इतने पानी से तुम्हारा कुछ न होगा, इसलिए मेरे साथ चलो, मैं तुम्हें बहुत सारा पानी दिलवाऊँगा।
झरने की बात सुनकर बादल खुष हो गया, उसके पैरों में नई स्फूर्ति आ गई। झरना और बादल दोनों ही पर्वत से होकर गुजरने लगे। दौड़ते-दौड़ते जब वे काफी नीचे आ गए, तब उन्हें वहाँ नदी मिली। झरना तो धम्म् से नदी में जा गिरा, उधर बादल अपने पास झरने को न पाकर परेषान हो गया, वह उसे इधर-उधर देखने लगा। आगे की कहानी ऑडियो की मदद से सुनिए...
लेबल:
दिव्य दृष्टि,
बाल कहानी
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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