सोमवार, 4 अप्रैल 2016
कविताएँ - भारती परिमल
भारती परिमल की कविताओं के कुछ अंश यहाँ प्रस्तुत हैं, जिन्हें पढ़ने के बाद इनका सुनकर आनंद उठाइए...
1 वादा...
आज हवाओं ने
किया है वादा घटाओं से
वे उन्हें उड़ाते हुए
झुलसते रेगिस्तान की
रेतीली धरती पर ले जाएगी
जहाँ हर कण
तरस रहा है भीगने को
सूखे पत्तों की
चरमराहट में भी
बँधी है आस
फुहारों में भीगने की...
2 संवेदनाएँ...
लोग कहते हैं
हमारी संवेदनाएँ खोती जा रही हैं
लेकिन हमारी संवेदनाएँ अभी भी
हमारे आसपास जमी हैं
और किसी अपनों के लिए
हिमनदी सी पिघलने लगती हैं...
3 सुबह आएगी कभी...
इस रात की सुबह आएगी कभी
खामोश चीखें गूँजेंगी कभी
संवेदनाएँ गुनगुनाएँगी कभी
बूढ़ी आँखों में रोशनी जगमगाएगी कभी
निराशा में आशा की कोंपलें फूटेंगी कभी
कुरीतियों की सख्त बेड़ियाँ टूटेंगी कभी
बेटे को घर की याद सताएगी कभी
राखी की डोर पास बुलाएगी कभी...
4. नई सुबह...
काली रात
जा छुप जा कहीं
कल की सुबह
प्यार की सुबह होगी
जब जन्म लेगी
सुबह नए सिरे से
माँग भरेंगी
रात की जुल्फें
सुनहरी किरणों से
सितारें रो-रोकर
करेंगे मैदान को शबनमी
हवाओं के संग
वादियाँ गुनगुनाएँगी
फूलों-कलियों पर
तितलियाँ खिलखलाएँगी
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