शुक्रवार, 22 अप्रैल 2016
बाल कहानी - चुनमुन का स्कूल का पहला दिन
कहानी का कुछ अंश...
स्कूल का पहला दिन, भला इस दिन को कौन याद रखना नहीं चाहेगा? यही दिन तो होता है, जब एक बच्चे को पहली बार घर से बाहर एक अलग ही दुनिया से वास्ता पड़ता है।यह एक ऐसी दुनिया होती है, जहाँ उसे प्यार मिले, तो वह उसे ही अपना दूसरा घर मान लेता है, पर यदि वहाँ उसे प्यार न मिले और उसका सामना किसी ऐसे षिक्षक या षिक्षिका से हो, जो गुस्सैल हों, तो फिर बच्चे का भविश्य चैपट ही समझो।यही दिन होता है, जब बच्चे के अचेतन मन में संस्कार का बीज प्रस्फुटित होता है।पहले दिन ही यदि बच्चे को मनचाहा वातावरण नहीं मिलता, तो वह काफी कंुठित हो जाता है।स्कूल आने के पहले उसे कई हिदायतें दी जाती हैं, जिन्हें वह स्कूल में आकर जानना चाहता है।यदि उन हिदायतों के एवज में स्कूल का वातावरण अनचाहा है, तो उसकी हरकतों में एक तरह का विरोध उजागर होता है।कुछ ऐसा ही हुआ उस दिन चुनमुन के साथ।
आज चुनमुन का स्कूल का पहला दिन है। पिछले एक महीने से लगातार घर के सभी लोग उसे स्कूल जाने के लिए मानसिक रूप से तैयार कर रहे हैं। मम्मी उसे एक के बाद एक पोएम सिखाए जा रही है। पेंसिल पकड़ना, किताब सीधी कहाँ से है, काॅपी में किस तरफ लिखना है, उसका पूरा नाम, घर का पता, मम्मी-पापा का नाम सब कुछ रटवाया जा रहा है। कहीं घूमने जाने पर वहाँ भी लोगों के बीच इस बात की चर्चा जरूर होती है कि हमारी चुनमुन भी इस बार स्कूल जाएगी। षाम की सैर के समय दादाजी चुनमुन को स्कूल जाने संबंधी हिदायत जरूर देते हैं। रात को दादी कहानियों में भी स्कूल का ज़िक्र करती है। बड़ा भाई भोलू तो उसे स्कूल के नाम से चिढ़ाया ही करता है। कुल मिलाकर सभी उसके पीछे पड़े हैं। सभी की बस यही इच्छा है कि वह स्कूल जाए। मम्मी-पापा ने बाजार से उसके लिए बहुत सा सामान खरीदा है- स्कूल बैग, कम्पास बाॅक्स, टिफिन, पानी की बाॅटल और भी न जाने क्या-क्या स्कूल से जुड़ी हुई चीजें.... उसे तो सभी के नाम भी अभी नहीं मालूम। अब धीरे-धीरे इन सभी के नाम याद करने होंगे। आज वह दिन आ ही गया।
चुनमुन पूरी रात ठीक से सो नहीं पाई। उसे रात को अजीब-अजीब सपने आते रहे, कभी बहुत से लोगों के एकसाथ चिल्लाने की आवाज, तो कभी किसी के हाथों में बड़ा सा डंडा लेकर उसे फटकारने की आवाज, तो कभी वाहनों का षोर। वह एकदम से चैंक पड़ती और उसकी नींद खुल जाती।सुबह मम्मी ने उसे जल्दी जगा दिया और पूरे उत्साह के साथ उसे तैयार करने लगी। वह एक रोबोट की तरह मम्मी के इषारों पर नाचती हुई अंत में तैयार हो गई और उसे गाल पर एक प्यारी-सी पप्पी देते हुए स्कूल बस में चढ़ाकर बाय कह दिया गया।
स्कूल में आकर चुनमुन को एक नई ही दुनिया दिखाई दी।चारों ओर बच्चे ही बच्चे। दौड़ते-भागते, उछलते-कूदते मस्ती करते बच्चे। वाह! ये तो बहुत अच्छी जगह है। यहाँ तो सभी अपने मन से जहाँ चाहे वहाँ भाग सकते हैं। खेल सकते हैं। कोई रोक-टोक नहीं। घर में तो दिन भर दादी, मम्मी और बुआ की डाँट ही सुनते रहो। चुनमुन ऐसा नहीं करो, चुनमुन वैसा नहीं करो। यहाँ तो सभी बच्चे मिलकर अपनी मनमानी कर रहे हैं।मैं भी इनके साथ मिलकर अपने मन की करूँगी और खूब मस्ती करूँगी।इतने में प्रार्थना की घंटी बजी और टीचर ने सभी बच्चों को एक पंक्ति में खड़े होने का निर्देष दिया।कुछ समय के लिए षोरगुल थम गया और सारे बच्चे टीचर के कहे अनुसार करने लगे। आगे क्या हुआ, जानने के लिए ऑडियो की मदद लीजिए...
लेबल:
दिव्य दृष्टि,
बाल कहानी
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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