सोमवार, 25 अप्रैल 2016

महाराष्ट्र का अकाल पिछली सरकार सर्जित

डॉ. महेश परिमल
आईपीएल खेलों का शुभारंभ हो गया है। इसी के साथ यह बात भी सामने आई है कि क्या इन खेलों में होने वाली पानी की बरबादी को रोका जा सकता है? महाराष्ट्र में अकाल को देखते हुए पानी की किल्लत साफ दिखाई दे रही है। अब लोगों का ध्यान गया है कि सच में एक मैच के दौरान न जाने कितने लाख लीटर पानी की बरबादी होती है। वास्तव में देखा जाए, तो महाराष्ट्र में पानी के जिस भीषण अकाल की बात की जा रही है, वह मानव नहीं, सरकार सर्जित है। महाराष्ट्र में ऐसी कई योजनाएं हैं, जिसमें लाखों लीटर पानी की बरबादी हो रही है, जिसे देखने वाला कोई नहीं है। इन योजनाओं को छोड़ भी दें, तो मुम्बई और नागपुर में स्थित मंत्रियों के बंगले के लॉन के रख-रखाव में रोज ही लाखों लीटर पानी बरबाद हो रहा है।
महाराष्ट्र में शकर के कारखानों को चलाने के लिए अरबों लीटर पानी की बरबादी होती है। इससे भी अधिक बरबादी महाराष्ट्र के कुल 41 थर्मल पॉवर प्लांट में होती है। कोयला जलकर जब बिजली उत्पादन करता है, तब थर्मल पॉवर प्लांट में कितना पानी बरबाद होता है, इसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी। महाराष्ट्र में बांधों से महाराष्ट्र का अकाल मानव नहीं, सरकार सर्जित
डॉ. महेश परिमल
उद्योगों के लिए कुल कितना पानी दिया जाता है, उसका 44 प्रतिशत पानी थर्मल पॉवर प्लांट्स में बरबाद होता है।
सरकार के आंकड़े बताते हैं कि महाराष्ट्र में उद्योगों के लिए कुल 286.9 करोड़ घनमीटर पानी की आपूर्ति की जाती है। इसमें से 125.5 करोड़ घनमीटर पानी तो केवल 41 थर्मल पॉवर प्लांट के लिए ही दिया जाता है। एक घनमीटर यानी 1000 लीटर के हिसाब से गिनती की जाए, तो थर्मल पॉवर प्लांट के लिए राज्य का कुल 1255 अरब लीटर पानी की आपूर्ति की गई है। कहां आईपीएल में खर्च होने वाला 66 लाख लीटर पानी और कहां थर्मल पॉवर प्लांट में इस्तेमाल में लाया जाने वाला 1225 अरब लीटर पानी? यदि महाराष्ट्र का बिजली का उत्पादन आधा कर दिया जाए, तो 60000 करोड़ लीटर पानी की बचत हो सकती है।
थर्मल पॉवर प्लांट में कोयला जलता है, तो भाप तैयार होती है, इसी भाप से बडे-बड़े टर्बाइन चलते हैं। थर्मल पॉवर प्लांट को ठंडा रखने के लिए लाखों लीटर पानी की आवश्यकता होती है। विदर्भ के लिए अकाल एक स्थायी भाव हो गया है। इसके अकालग्रस्त क्षेत्र चंद्रपुर और कोराडी में दो थर्मल पॉवर स्थापित किए गए हैं। विदर्भ थर्मल पॉवर प्लांट के लिए 350 अरब लीटर पानी की आपूर्ति की जाती है। इसी क्षेत्र में ही स्थित इंडिया बुल के पॉवर प्लांट के लिए अपर वर्धा सिंचाई योजना का पानी दिए जाने कारण ही विदर्भ के नाराज किसानों ने इंडिया बुल के कार्यालय में तोड़फोड़ की थी।
हमारे देश में सबसे अधिक बांध यदि कहीं बनाए गए हैं, तो वह राज्य है, महाराष्ट्र। इन बांधों को बनाने का उद्देश्य किसानों को सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध कराना था। ताकि किसानों की हालत सुधर जाए। इसमें से सिंचाई के अलावा पीने के पानी के लिए भी अलग से कोटा रखा गया था। पर विकास के नाम पर इस राज्य ने उद्योगों को अधिक से अधिक बढ़ावा दिया गया। इस चक्कर में जो पानी सिंचाई के लिए रखा गया था, वह उद्योगों को दे दिया गया। इस तरह का गोरखधंधा महाराष्ट्र में काफी समय से चल रहा है। 2003 में जब शरद पवार के भतीजे अजीत पवार जब यहां के सिंचाई मंत्री थे, उस दौरान राज्य के 41 बांधों का 198 करोड़ घनमीटर पानी सिंचाई के बदले उद्योगों को देने का निर्णय लिया गया। इस निर्णय के कारण राज्य की 3.23 लाख हेक्टेयर जमीन सिचाई से वंचित रह गई। यह जानकारी पुणे की प्रयास नामक संस्था ने राइट टू इंफर्मेशन एक्ट के तहत प्राप्त की। इस जानकारी के अनुसार 2003 से 2011 के बीच महाराष्ट्र के 23 बांधों का 30 से 90 प्रतिशत पानी सिंचाई के बदले उद्योगों को दे दिया गया। उदाहरणस्वरूप रायगढ़ जिले के हेतवणे डेम का 88 प्रतिशत पानी स्पेशल इकॉनामी जोन को दे दिया गया था। पावना और अंबा बांधों का 81 प्रतिशत पानी सिंचाई के बदले उद्योगों को दे दिया गया था।
महाराष्ट्र सरकार के सिंचाई मंत्रालय ने बांधों का पानी उद्योगों को देने का निर्णय लिया, इसका सबसे अधिक लाभ निजी उद्योगों को हुआ। पानी के वितरण का ला कुल 47 कारखानों को मिला। पर इसमें से 12 कारखानों को सबसे अधिक 90 प्रतिशत पानी का लाभ मिला। जिन 15 थर्मल पॉवर प्लांट को अधिक पानी दिया गया, उसमें से 13 निजी थे। इसमें अमरावती स्थित इंडिया बुल्स की सोफिया पॉवर कंपनी, अदाणी रिलायंस और लान्को का भी समावेश होता है। थर्मल पॉवर प्लांट के लिए बांधों का जो पानी दिया गया, उसमें से 17 प्रतिशत इंडिया बुल्स और 7.7 प्रतिशत अडाणी के पॉवर प्लांट को दिया गया।
सिंचाई के लिए जो बांध बनाए गए थे, उसका पानी उद्योगों के अलावा पीने और घरेलू उपयोग के लिए भी तय किया गया है। किंतु इसका उपयोग शहरी क्षेत्रों के लोगों को ही अधिक मिल रहा है। 2003 से लेकर 2011 तक सिंचाई का जितना पानी पीने के उपयोग में लाया गया, उसका 98 प्रतिशत पानी नागपुर, मुम्बई, नई मुम्बई, पुणे और नासिक जैसे शहरों को दे दिया गया। ग्राम पंचायतों को केवल 2 प्रतिशत पानी ही दिया गया। आज की तारीख में गांव के लोग पानी के लिए तरस रहे हैं, उन हालात में शहर में विशेष लोगों को स्वीमिंग पूल के लिए पानी दिया जा रहा है। इससे साफ है कि देश में जल नीति किसानों को लेकर नहीं, बल्कि शहरों के विशेष लोगों को सामने रखकर ही बनाई जाती है। उद्योगपतियों को संरक्षण देने वाली गरीब किसानों के साथ अन्याय कर रही है। प्रकृति के पानी के चक्र को तोड़ने में भूमिका सबने निभाई है, पर इसका खामियाजा केवल गरीबों को ही भुगतना पड़ता है। पानी की कमी के कारण फसलें प्रभावित हो रही हैं। किसान कर्ज से लदकर आत्महत्या को मजबूर है, ऐसे में यह कैसे कहा जा सकता है कि सरकार किसानों के हित में काम कर रही है। किसानों का ही हित देखना है, तो उसके हिस्से का पूरा पानी उसे ही मिले। उद्योगों के लिए कोई दूसरी व्यवस्था की जाए। किसानों का हक मारकर उद्योगों को किस तरह का बढ़ावा दिया जा रहा है। जब फसलें ही नहीं होंगी, तो उद्योग क्या करेंगे। वैसे भी विकास के नाम पर उद्योगों को जिस तरह से बढ़ावा दिया जा रहा है, उससे उद्योग तो बढ़े हैं, पर किसानों की जमीन और पैदावार दोनों ही कम होते जा रही है। हर राज्य में किसानों द्वारा की जाने वाले आत्महत्याओं के आंकड़े बढ़ते जा रहे हैं। केंद्र सरकार को जल नीति पर एक बार फिर से गंभीरता के साथ विचार करना होगा, तभी साफ हो पाएगा कि सरकार
डॉ. महेश परिमल

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