सोमवार, 18 अप्रैल 2016
कहानी - सौभाग्यवती - सुमन सारस्वत
कहानी का कुछ अंश....
निम्मी आज स्कूल नहीं गई थी. रात को उसकी मम्मी के सर में बेहद दर्द था. शाम को ही मम्मी को उबकाई आने लगी थी. और रात गहराते-गहराते दर्द बढ़ने लगा था. जब दर्द तीव्र हो जाता था तो मम्मी को उल्टियां होने लगती. यह माइग्रेन का दर्द था जो उसकी मम्मी को महीने में एक बार उठता ही था. रात को मम्मी को एक बार उल्टी हुई थी. तो मां ने निम्मी को ही मदद के लिए पुकारा था क्योंकि निम्मी पहली ही आवाज में उठ जाती है.
निम्मी ने मम्मी को उल्टी कराने के बाद बिस्तर पर सुलाया. पानी पिलाकर एक बार फिर मम्मी के माथे पर बाम लगा दिया और मम्मी की बगल में लेटे-लेटे इंतजार करने लगी कि मम्मी को दर्द से कुछ राहत मिले और वो सो जाएं. सुबह कितने काम करने होते हैं मम्मी को. यही सोचते-सोचते निम्मी की पलकें बोझिल होने लगीं तभी उसे बाहर से अजीब-सी आवाजें सुनाई दीं. वह चौंक उठी. आंखे बंद किए-किए ही उसने आवाज पर ध्यान दिया. यह तो किसी कुत्ते की आवाज थी. मगर रोज से अलग ही बिल्कुल अलग. निम्मी को यकीन हो गया यह कुत्ता भौंक नहीं रहा था. ऐसा लग रहा था जैसे रो रहा हो, एक छोटे बच्चे की तरह. किसी आशंका से निम्मी डर गई. डर के मारे उसने पलके मूंद लीं और स्वतः ही उसके होंठ भिंच गए.
निम्मी ने सुन रखा था कि कुत्तों के रोने से अपशकुन होता है. किसी के मरने का अपशकुन... यह याद आते ही निम्मी बुरी तरह घबरा गई. आज उसकी मम्मी बीमार है कहीं वह....बस! इसके आगे वह बुरी कल्पना न कर सकी. बड़ी हिमत के साथ उसने आंखे खोलीं, मां को देखने के लिए. मगर लेटे-लेटे उसे मां की स्थिति का सही-सही अंदाजा नहीं मिला. उसने गर्दन उठाकर देखा मां शांत पड़ी थी. चेहरे पर दर्द के कोई निशान नहीं थे. उसका दिल धड़का-कहीं मम्मी मर तो नहीं गई. उसे सूझ नहीं रहा था कैसे वह पता लगाए कि मम्मी जिंदा है या नहीं.....फिर हिम्मत करके वह मम्मी से चिपक गई. नींद में ही मम्मी ने उसे अपने सीने से लिपटा लिया और सोई रही. मां की बांहों में जकड़ी निम्मी अब पूरी तरह से बेखौफ थी. कुछ ही पलों में निंदिया रानी ने भी उसे धर दबोचा.
सुबह जब निम्मी उठी तो उसे पता था आज मम्मी को कमजोरी रहेगी इसलिए वह घर पर ही रुक गई. मम्मी से पूछ-पूछकर उसने ढोकला बनाया लसून-मिर्ची की चटनी मम्मी ने खुद ही बनाई. अपने भाई-बहन का टिफिन आज निम्मी ने ही पैक किया. उनको स्कूल बस में वही बिठाकर आई. घर आकर देखा पप्पा नाश्ता कर चुके थे. वे भी अपने हीरा घिसने के कारखाने जाने के लिए तैयार थे.
चौदह साल की निम्मी से छोटी एक बहन और एक भाई था. भाई-बहन में बड़ी निम्मी, घर की बड़ी बेटी की तरह जिम्मेदार और समझदार थी. वह अक्सर मम्मी की मदद कर दिया करती थी. पप्पा जब घर पर ही चोपड़ा लेकर हिसाब करने बैठते तो वह भी उनकी बगल में बैठ जाती. स्कूल से आने के बाद खाना खाने के बाद अपने भाई-बहन के साथ होमवर्क करने बैठ जाती. होमवर्क पूरा होते ही पड़ोस के बच्चे खेलने निकल पड़ते. फिर सबके साथ निम्मी भी शाम से ही घर पहुंचती.
आज सबके घर से बाहर निकल जाने के बाद मां-बेटी घर पर अकेली रह गईं. इस समय निम्मी को घर सूना-सूना लग रहा था. बाहर रिमझिम-रिमझिम बरसात हो रही थी. सूरज न निकला था न छिपा था. मटमैला-सा दिन कोत पैदा कर रहा था. निम्मी के मन में आया कि पड़ोस में किसी के घर चली जाए. पर सारे बच्चे तो स्कूल गए थे. वह दरवाजे से बाहर आ गई. उसने चारो तरफ देखा. सबके दरवाजे बंद थे या उढ़के हुए...
आगे की कहानी जानने के लिए सुनिए ऑडियो....
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कहानी,
दिव्य दृष्टि
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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