शनिवार, 16 अप्रैल 2016
बाल कहानी - फकीर का उपदेश
एक बार गाँव में एक बूढ़ा फ़क़ीर आया । उसने गाँव के बाहर अपना आसन जमाया । वह बड़ा होशियार फ़क़ीर था । वह लोगों को बहुत सी अच्छी-अच्छी बातें बतलाता था । थोड़े ही दिनों में वह मशहूर हो गया । सभी लोग उसके पास कुछ न कुछ पूछने को पहुँचते थे । वह सबको
अच्छी सीख देता था ।
गाँव में एक किसान रहता था । उसका नाम रामगुलाम था । उसके पास बहुत सी ज़मीन थी, लेकिन फिर भी रामगुलाम सदा गरीब रहता था । उसकी खेती कभी अच्छी नहीं होती थी ।
धीरे-धीरे रामगुलाम पर बहुत सा क़र्ज़ हो गया । रोज़ महाजन उसे रुपये के लिए तंग करने लगा । लेकिन खेतों में अब भी कुछ पैदा नहीं होता था । रामगुलाम ख़ुद तो खेतों में बहुत कम जाता था । वह सारा काम नौकरों से लेता था । उसके यहाँ दो नौकर थे । वे जैसा चाहते, वैसा करते थे ।
आखिर महाजन से तंग आकर रामगुलाम ने अपनी आधी ज़मीन बेच दी । अब आधी ज़मीन ही सके पास रह गई ।
जिन खेनों में बहुत कम पैदावार होती थी वही रामगुलाम ने बेच दिये थे । जिस किसान ने उसकी ज़मीन ली थी वह बड़ा मेहनती था । वह अपना सारा काम अपने हाथों से करने की हिम्मत रखता था । जो काम उससे न होता वह मजदूरों से कराता, पर रहता सदा उनके साथ ही साथ था । वह कभी अपना काम मज़दूरों के भरोसे नहीं छोड़ता था ।
पहली ही फ़सल में उस किसान ने उन खेतों को इतना अच्छा बना दिया कि उनमें चौगुनी फ़सल हुई । रामगुलाम ने जब यह देखा तो वह अपने भाग्य को कोसने लगा । इधर उस पर और भी कर्ज़ हो गया और उसको बड़ी चिन्ता रहने लगी ।
आख़िर एक दिन वह भी उस फ़क़ीर के पास गया । उसने बड़े दुख के साथ अपने दुर्भाग्य की कहानी फ़क़ीर से कह सुनाई । फ़क़ीर ने सुनकर कहा-अच्छी बात है, कल हम तुम्हें बताएँगे ।
रामगुलाम चला आया । उसी रात को फ़क़ीर ने गाँव में जाकर रामगुलाम की दशा का सब पता लगा लिया । दूसरे दिन उसने रामगुलाम के पहुँचने पर कहा- तुम्हारे भाग्य का भेद सिर्फ 'जाओ और आओ' में है । वह किसान 'आओ' कहता है और तुम 'जाओ' कहते हो । इसी से उसके ख़ूब पैदावार होती है, और तुम्हारे कुछ नहीं ।
रामगुलाम कुछ भी न समझा । तब फ़क़ीर ने फिर कहा--तुम खेती का सारा काम मज़दूरों पर छोड़ देते हो । तुम उनसे कहते हो--जाओ ऐसा करो, पर ख़ुद न उनके साथ जाते हो, न काम करते हो । पर वह किसान मज़दूरों से कहता है-आओ, खेत चलें' । वह उनके साथ-साथ जाता
है, और साथ-साथ मेहनत करता है । मज़दूर भी उसके डर से ख़ूब मेहनत करते हैं । तुम्हारे मज़दूरों की तरह वे मनमाना काम नहीं करते । इसलिए अगर तुम चाहते हो कि तुम्हारे खेतों में भी ख़ूब पैदावार हो तो 'जाओ' छोड़कर 'आओ' के अनुसार चलना सीखो ।
रामगुलाम ने फ़क़ीर की बात मान जी । उस दिन से आलस्य न्यागकर वह अपने खेत में मज़दूरों के साथ कड़ी मेहनत करने लगा । अब उसके उन्हीं खेतों में ख़ूब फ़सल होने लगी ।
इसी कहानी का आनंद ऑडियो की मदद से लीजिए...
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दिव्य दृष्टि,
बाल कहानी
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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