गुरुवार, 21 अप्रैल 2016
बाल कहानी - श्रेष्ठ कौन
कहानी का कुछ अंश...
एक राजा था।उसके तीन बेटे थे।तीनों ही राजकुमार अपने आपको एक-दूसरे से बहादुर, होशियार और बुद्धिमान मानते थे।वे खेल-खेल में हमेशा एक-दूसरे को नीचा दिखाते हुए अपने आपको श्रेष्ठ साबित करने में लगे रहते थे। एक दिन इसी बात को लेकर उनमें बहुत समय तक बहस होती रही। जब कोई नतीजा नहीं निकला, तो आपस में तय किया कि क्यों न रानी माँ के पास जाकर इस बात का निर्णय लिया जाए!
तीनों राजकुमार रानी माँ से मिले और अपनी बात उनके सामने रखते हुए प्रश्न पूछा- बताओ माँ हम तीनों में से श्रेष्ठ कौन है? यह सुनकर रानी माँ भी कुछ देर के लिए मौन हो गई, क्योंकि उनके तीनों ही बेटे एक-दूसरे से बढ़कर पराक्रमी और होशियार थे।वे स्वयं ही सोच में पड़ गई कि इन तीनों में से सर्वश्रेष्ठ कौन है?
रानी माँ ने तीनों ही पुत्रों को शांत करते हुए एवं प्यार से समझाते हुए कहा कि मेरे लिए तो तुम तीनों ही होशियार और श्रेष्ठ हो। तुम तीनों ही मेरे लिए बराबर हो। किंतु वे तीनों तो ठहरे राजकुँवर। भला वे इस बात से कैसे एक क्षण में ही सहमत हो जाते! वे तीनों तो जिद पर आ गए और हठ करते हुए बोले- नहीं, नहीं, आपको कहना ही होगा कि हम तीनों में से कौन सबसे अधिक श्रेष्ठ है।
अब तो रानी माँ सचमुच ही परेशानी में पड़ गई। थोड़ी देर सोचने के बाद वे बोली- ठीक है, बच्चों! एक काम करो, एक महीने में तुम तीनों में से जो भी सबसे अधिक उपयोगी चीज मेरे लिए ले आएगा, वही मेरी नजरों में श्रेष्ठ होगा।
तीनों राजकुमारों को रानी माँ की यह बात जँच गई। वे तीनों ही दूसरे दिन रानी में के लिए उपयोगी चीज लाने के लिए राज्य से बाहर परदेस के लिए निकल पड़े। पहला राजकुमार जिस देश में गया, वहाँ घूमते-घूमते उसे बाजार में जादुई चश्मा बिकते हुए देखा। इस चश्मे की विशेषता यह थी कि इसे पहनकर जिसे देखने की इच्छा हो, उसे देखा जा सकता था। राजकुमार को यह चीज बहुत अच्छी लगी और उसने उसे खरीद लिया।
दूसरा राजकुमार जिस देश में गया, वहाँ उसे बाजार में एक ऐसा जादुई कालीन दिखाई दिया, जिस पर बैठ कर जहाँ जाने की इच्छा हो, वहाँ जाया जा सकता था। उसने वह बेशकीमती जादुई कालीन खरीद लिया।
तीसरे राजकुमार को परदेस में एक जादुई फल मिला, जिसे सूँघने मात्र से ही मरणासन्न व्यक्ति भी बिस्तर से उठ खड़ा होता था। राजकुमार को यह फल सबसे अधिक उपयोगी लगा और स्वर्णमुद्राएँ देकर उसने वह फल खरीद लिया।
इस तरह से तीनों ही राजकुमार ने अपनी-अपनी बुद्धिमानी से श्रेष्ठ वस्तुओं का चयन कर उसे खरीद लिया। आगे की कहानी जानने के लिए ऑडियो की मदद लीजिए...
लेबल:
दिव्य दृष्टि,
बाल कहानी
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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