शुक्रवार, 1 अप्रैल 2016
जातक कथा - 2 - चक्री
उसका नाम चक्री था। वह एक वणिक था। धन का व्यापार करता था। सभी को ब्याज पर और वह भी चक्रवृध्घि ब्याज पर पैसे दिया करता था। उसका लालच बढ़ता जा रहा था। वह रात-दिन बस इसी काम में लगा रहता था। लोग जानते थे कि वह उन्हें लूटता है, फिर भी उसके पास आवश्यकता पड़ने पर जाना उनकी विवशता थी। चक्री का लोभ-लालच एकाएक एक छोटी-सी घटना के कारण दूर हो गया। उसमें त्याग, वैराग्य की भावना आ गई। वह पूरी तरह से बदल गया। ऐसा क्या हुआ, कौन आया उसके जीवन ने, किसने उसे इतना अधिक प्रभावित किया कि वह अपना स्वार्थ त्याग बैठा और एक भिक्षु बन बैठा। इन प्रश्नों के उत्तर जानने के लिए सुनिए ये जातक कथा - चक्री...
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कहानी,
दिव्य दृष्टि
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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congrates Bharti for a beautiful story with a convincing message .Wish we can follow .
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