सोमवार, 18 अप्रैल 2016
कविता - काव्य कोकिला - मालिनी गौतम
मैं हूँ औरत,
सर से पाँव तक औरत,
पालने में ही घिस-घिस कर
पिला दी जाती है मुझे घुट्टी
मेरे औरत होने की,
उसी पल से मुझे
कर दिया जाता है विभक्त
अलग-अलग भूमिकाओं में,
बना दिया जाता है मुझे
नाजुक…कोमल…लचीली
ताकि मैं जिंदगी भर
उगती रहूँ
उधार के आँगन में,
पनपती रहूँ
अमर बेल बनकर
किसी न किसी तने का सहारा लिये,
कुछ भी तो नहीं होता मेरा अपना
न जड़ें...न आँगन ...और न आसमान....
मुझे भी बनना है
टट्टार तने वाला वृक्ष
जिसकी कोटरों में
पंछी करते हों किल्लोल,
मेरी शाखाओं,पत्तियों और कोंपलों को
आकाश में फैलाकर
मैं घूँट-घूँट पीना चाहती हूँ
उजाले को,
आसमान से बरसते प्रकाश में
एकाकार होकर
लद जाना चाहती हूँ फूलों से,
सुरीली आवाज में
गाना चाहती हूँ गीत
मेरी आजादी के,
जमीन के साथ-साथ
आसमान में भी
पसारना चाहती हूँ मेरी जड़ें,.....
लेकिन........मेरी फैलती हुई जड़ें
शायद हिला देती हैं
उनके सिंहासनों को.....,
मेरे आजादी के गीत
शायद उँडेलते हैं
गरम-गरम सीसा
उनके कानों में....
तभी तो घोंट दी जाती है
मेरी आवाज,...
..........................
सदियों पहले भी,
एक थेरियस ने किया था
बलात्कार फिलोमेला का
काट डाली थी उसकी जबान.
अपने देवत्व के बलबूते पर
बना दिया था उसे ‘काव्य-कोकिला’
.............बिना जीभ की ‘काव्य-कोकिला’
सिलसिला आज भी जारी है
आज भी मैं हूँ
जीभ बिना की कोकिला
ताकि यूँ ही सदियों तक गाती रहूँ
और कोई न कर सके अर्थघटन
मेरे काव्य का...
कवयित्री मालिनी गौतम की इस कविता का आनंद ऑडियो की मदद से लीजिए...
लेबल:
कविता,
दिव्य दृष्टि
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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- हिंदी विशेष
आपने लिखा...
जवाब देंहटाएंकुछ लोगों ने ही पढ़ा...
हम चाहते हैं कि इसे सभी पढ़ें...
इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना दिनांक 19/04/2016 को पांच लिंकों का आनंद के
अंक 277 पर लिंक की गयी है.... आप भी आयेगा.... प्रस्तुति पर टिप्पणियों का इंतजार रहेगा।