बुधवार, 27 अप्रैल 2016
हारे नहीं हैं हम अभी - 3
कहानी का कुछ अंश...
कहते हैं कि जब एक मासूम मुस्कराता है, तो उसकी मुस्कान में खुदा नजर आता है। मैंने भी देखा है, एक मासूम को मुस्कराते हुए। ये घटना उस समय की है, जब मैं आॅफिस में काम करती थी। शाम को आॅफिस से घर लौटते वक्त शहर के एक बस स्टॉप पर बस का इंतज़ार करते हुए अक्सर शनिवार को उससे मुलाकात हो जाया करती थी। वो दौड़कर मेरे करीब आता था और अपनी पीतल की छोटी-सी बाल्टी मेरे सामने करते हुए मुस्कराते हुए कहता था - जय शनि महाराज! उसकी बाल्टी में शनि महाराज की काली मूर्ति होती थी, साथ ही थोड़ा-सा तेल और कुछ सिक्के होते थे। पैसे मिलने की आशा में ही वह मेरे पास दौड़ा चला आता था।
उसके चेहरे पर लाचारगी और मासूमियत की झलक इस तरह एक साथ नजर आती थी कि हाथ अनायास ही पर्स तक पहुँच जाते थे। उसकी मासूम मुस्कान को देखते हुए... पर्स टटोलते हुए... पचास, एक या दो का जो भी सिक्का हाथ में आता था, वो मैं उसे थमा देती थी। वो पूरी बत्तीसी दिखाता हुआ कूदता-फाँदता वहाँ से उड़न-छू हो जाता था। मेरे पर्स में चॉकलेट या पीपरमेंट जरूर होती थी, ताकि बस के घुटन भरे माहौल में मुझे तकलीफ न हो। कभी-कभी खुल्ले पैसे न होने की स्थिति में मैं उसे वही थमा दिया करती थी और वो खुश हो जाता था।
कुदरत की बनाई अनुपम कृतियों में वो एक ऐसी कृति थी कि जिसके साथ कोई संबंध न होने पर भी अपनापन महसूस होता था। मैंने कभी उसका नाम नहीं पूछा, बस छोटू कहकर पुकारती थी और वह पीछे मुड़कर देखता था। कुछ महीनों से ये सिलसिला चला आ रहा था। शनिवार की शाम वो मुझे बस स्टॉप पर खड़ा मिलता या मुझे देखते ही दौड़ता-भागता आ जाता था।
एक शनिवार को जब वो मेरे पास आया तो बहुत खुश था। यूँ लगा जैसे चहक रहा हो। उसके होंठ नहीं आँखे मुस्करा रही थी। मैंने आश्चर्य से उसे देखा! जैसे वो मेरे चेहरे पर उभरे प्रश्नों को समझ गया हो। उसने तुरंत अपनी बाल्टी मेरे सामने कर दी। आज उसकी बाल्टी आधी तेल से भरी हुई थी। शनि महाराज पूरी तरह से तेल में डूबे हुए थे। साथ ही सिक्के भी बहुत सारे थे। बहुत से लोगांें ने उसे तेल का दान दिया था। मैंने पूछा-अहा! छोटू, तो आज इसलिए खुश हो तुम? आज तो तुम्हें बहुत-सा दान मिला है। आज ये चमत्कार कैसे हो गया? वो हँसता हुआ बोला-आज मैं मंदिर गया था। वहाँ पर बहुत भीड़ थी। मुझे बहुत फायदा हुआ। अब मैं हर शनिवार को वहाँ जाऊँगा। लोगों का अंधविश्वास उसके चेहरे पर खुशी बनकर झलक रहा था।
मैंने उसे ध्यान से देखा-9-10 साल का मासूम! शरीर से पूरी तरह स्वस्थ। केवल भाग्यदेवता की कंजूसी कि आर्थिक दृष्टि से कमजोर! किन्तु क्या यह केवल भाग्य का ही दोष था? क्या माता-पिता का दोष नहीं था, जो एक छोटे बच्चे से भीख मँगवाने का काम करवा रहे थे ? या फिर क्या वह अनाथ था? मेरे मन में उसके बारे में जानने की उत्सुकता बढ़ी। दो-तीन बसें तो उसकी चहचहाहट में आँखों के सामने से गुजर ही चुकी थी। मैंने आने वाली और दो-तीन बसों को अनदेखा करने का मूड बना लिया और वहीं बस स्टॉप पर छोटू के साथ बैठ गई। उसकी खुशकिस्मती कि उस समय मेरे पर्स में दो फाइव स्टार थी। उसे ये थमाते हुए अपने पास बैठाया और पूछा-ये पैसे तो तुम्हारे काम आएँगे, लेकिन इस तेल का क्या करोगे ? क्या इसे बेच दोगे ? वो तेल से भरी बाल्टी को निहारते हुए गर्विली मुस्कान के साथ बोला- बेचूँगा क्यों ? इसे मैं घर ले जाऊँगा। माँ बड़ी खुश होगी। मैं मन ही मन सोच रही थी, वो कैसी माँ होगी जो बेटे से भीख मँगवाकर खुश होगी! इधर मेरी सोच से अनजान वो अपनी धुन में ही बोले जा रहा था- पिछले हफ्ते तो थोड़ा-सा ही तेल मिला था और वो भी एक स्कूटर से धक्का लगने पर गिर गया था। मेरी कमीज़ भी तेल वाली हो गई थी। पूरे हफ्ते माँ ने बिना तेल का खाना बनाया था। दो दिन पानी जैसी पतली उबली हुई दाल और एक दिन उबले आलू ही चावल के साथ खाए थे। इस हफ्ते तो माँ बघारी हुई दाल और अच्छी सब्जी बनाकर खिलाएगी। अच्छे भोजन की कल्पना से ही उसके मुँह में पानी आ गया था।
आगे की कहानी ऑडियो के माध्यम से सुनकर जानिए...
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कहानी,
दिव्य दृष्टि
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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