शुक्रवार, 22 अप्रैल 2016
बाल कहानी - शापित परी
कहानी का कुछ अंश...
रंगबिरंगी परियों का लोक-परीलोक। इस लोक में तरह-तरह की परियाँ रहती थीं। इन्हीं में एक परी थी, जो सबसे अलग थी। यूँ तो वह भी दूसरी परियों के समान ही सुंदर थी, लेकिन स्वभाव दूसरी परियों जैसा कोमल और दयालु न होकर कठोर था। वह थी भी बहुत तेज और गुस्सैल। बात-बात में गुस्सा हो जाती थी। तुनकमिजाज इतन की अपनी सहेलियों से भी छोटी-छोटी बातों में लड़ पड़ती थी। फिर नाराज हो कर एक कोने में बैठ जाती थी। उसमें सबसे बड़ी खराबी यह थी कि वह परीलोक के बाग में लगे उन फूलों से झगड़ा करती थी, जो उसे अच्छे नहीं लगते थे या फिर जिनके आसपास काँटे लगे हों। गुलाब के सुंदर पंखुड़ियों वाले फूल, जिनकी सारी परियाँ दीवानी थी, उसे तो वह बिल्कुल पसंद नहीं करती थी। वह उन्हें हाथों से मसलकर नष्ट कर देती थी। उसकी इस हरकत से सभी परियाँ दुःखी हो जाती थी। गुस्सैल परी को यदि इस बारे मंे समझाया भी जाए, तो वह तो तुरंत ही नाराज हो जाती। इसलिए उसे तो कुछ बोलना ही बेकार था। आखिरकार सभी परियाँ मिलकर पहुँची रानी परी के पास और उनसे उसकी हरकतों की षिकायत की। रानी परी ने उसे प्यार से समझाया- बेटी, तुम्हें दूसरों के साथ मिलजुलकर रहना चाहिए। सभी के साथ अच्छा व्यवहार करना चाहिए। यदि तुम सभी के साथ बुरा व्यवहार करोगी तो विवष होकर मुझे तुम्हें सज़ा देनी होगी। फिर तुम पत्थर या काँटेदार पेड़ बना दी जाओगी, इसलिए किसी से लड़ाई-झगड़ा न करो और हिलमिलकर रहो। फूलों से प्यार करो, सहेलियों से प्यार करो और हमेषा खुष रहो।
परी रानी के समझाने का उस घमंडी परी पर उल्टा ही असर हुआ। वह और गुस्सा हो गई। उसने सोचा- देखती हूँ कि मेरी षिकायत कौन करता है। मैं ऐसे फूलों को जादू से जला दूँगी। आखिर उसकी मनमानी बढ़ती गई और एक बार फिर उसकी षिकायत परी रानी के सामने आ पहुँची। अब तो परी रानी बहुत नाराज हो गई। उन्होंने घमंडी परी को बुलाया और कहा- नादान परी, मैंने तुम्हें समझाया था कि सबसे मिलजुलकर रहो, पर तुमने मेरी बात नहीं मानी। तुमने अपना नुकसान खुद किया है, अब सजा भुगतने के लिए तैयार हो जाओ। जब घमंडी परी ने देखा कि रानी परी तो बहुत गुस्से में है और उसे सजा देकर ही रहेगी, तो उसे थोड़ी अक्ल आई। वह रुआँसी हो कर बोली- मैं पेड़ या पत्थर नहीं बनना चाहती। मैं तो परीलोक को केवल सुंदर फूलों से सजा हुआ देखना चाहती थी इसीलिए कम सुंदर और काँटेवाले फूलों को नष्ट कर देती थी। मगर रानी ने उसकी एक न सुनी और अपनी जादू की छड़ी हाथ में लेकर कहा- मैं तुम्हें पेड़ या पत्थर नहीं, उससे सुंदर चीज बनाकर धरती पर भेज रही हूँ। उसके बाद रानी परी के जादू से धमंडी परी धरती पर आ गिरी।
आगे क्या हुआ, ये जानने के लिए ऑडियो की मदद लीजिए...
लेबल:
दिव्य दृष्टि,
बाल कहानी
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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