शनिवार, 23 अप्रैल 2016
कविताएँ - कृष्णा वर्मा
वाह री सरिता...
बहती सरिता स्वच्छ निर्मल जल
मृदु नाद तेरा करता कल-कल
मन मैला ना कोई भी छल
बहे निरंतर खा-खा सौ बल।
नभ के सूरज चाँद सितारे
वर्षों से खड़े वृक्ष किनारे
पीठ पे लहरों की चढ़-चढ़ के
किश्तों में लें पींग हुलारे।
अनुशासित सी विहंग कतारें
तिरती उड़तीं सरि किनारे
फेनल का उपहार लिए संग
सरिता की लहरों को निहारें।
पल-पल धारा सर्जित हुई जाए
भग्नमना तरू देवें बिदाई
उदग्नि पल्लव गिरें प्रवाह में
चूम दुलार प्रवाह अंक लगाए।
घुटनों बैठे पत्थर राह में
संग तिरने को करें उपाय
प्यार भरा आलिंगन दे तटी
कातर दृष्टि बेबसी जताए।
तूफानों से जूझ हो फिर स्थिर
मरूस्थलों का भाग्य सँवारे
पिया मिलन की ललक अनूठी
खारे जल में उमर गुज़ारे।
ऐसे ही अन्य भावपूर्ण कविताओंं का आनंद ऑडियो की मदद से लीजिए...
लेबल:
कविता,
दिव्य दृष्टि
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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