सोमवार, 25 अप्रैल 2016
कविताएँ - शबनम शर्मा
बेटियाँ....
शायद पल भर में ही
सयानी हो जाती हैं
बेटियाँ,
घर के अंदर से
दहलीज़ तक कब
आज जाती हैं बेटियाँ
कभी कमसिन, कभी
लक्ष्मी-सी दिखती हैं
बेटियाँ।
पर हर घर की
तकदीर, इक सुंदर
तस्वीर होती हैं
बेटियाँ।
हृदय में लिए उफान,
कई प्रश्न, अनजाने
घर चल देती हैं बेटियाँ,
घर की, ईंट-ईंट पर,
दरवाज़ों की चौखट पर
सदैव दस्तक देती हैं
बेटियाँ।
पर अफ़सोस क्यों सदैव
हम संग रहती नहीं
ये बेटियाँ। एेसी ही अन्य कविताओं का आनंद ऑडियो की मदद से लीजिए...
लेबल:
कविता,
दिव्य दृष्टि
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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Kavita ati sunder,rochak hai. saath hi prastuti bhi bhaawo ko aur bhi vyakt karne mi sahayak ho rahi hai.
जवाब देंहटाएंArchana singh