गुरुवार, 21 अप्रैल 2016
कविता - ठहर नहीं तू चलता चल...
ज्ञान की डगर पर
ठहर नहीं तू चलता चल
माना कि पथ यह दुर्गम है
पर तेरी साँसों में भी दम है
साथ तेरे संगी-साथी
क्या हुआ जो बहुत कम है
उनके हाथों को थाम कर
उनका दु:ख भी तू हरता चल... ज्ञान की डगर पर ठहर नहीं तू चलता चल
यह सफर बहुत तूफानी है
फिर भी क्या परेशानी है ?
दिशाएँ भी जो अनजानी है
फिर भी डर तो पुरानी कहानी है
ज्ञान की लहरों पर
पतवार लिए बस बढ़ता चल... ज्ञान की डगर पर ठहर नहीं तू चलता चल
तू मानव है,
विचारों का पुंज बन
हर मानव में मानवता भरता चल
कर्म क्षेत्र का बन योद्धा
तू हर क्षण स्वीकारता चल
धैर्य के साथ तू तो चलता चल
आत्मबल से मंजिल को पाता चल... ज्ञान की डगर पर ठहर नहीं तू चलता चल
इसे ऑडियो के माध्यम से सुनिए...
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कविता,
दिव्य दृष्टि

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