सोमवार, 25 अप्रैल 2016

कविताएँ - शबनम शर्मा

बेटियाँ.... शायद पल भर में ही सयानी हो जाती हैं बेटियाँ, घर के अंदर से दहलीज़ तक कब आज जाती हैं बेटियाँ कभी कमसिन, कभी लक्ष्मी-सी दिखती हैं बेटियाँ। पर हर घर की तकदीर, इक सुंदर तस्वीर होती हैं बेटियाँ। हृदय में लिए उफान, कई प्रश्न, अनजाने घर चल देती हैं बेटियाँ, घर की, ईंट-ईंट पर, दरवाज़ों की चौखट पर सदैव दस्तक देती हैं बेटियाँ। पर अफ़सोस क्यों सदैव हम संग रहती नहीं ये बेटियाँ। एेसी ही अन्य कविताओं का आनंद ऑडियो की मदद से लीजिए...

1 टिप्पणी:

Post Labels