शुक्रवार, 23 सितंबर 2016
खंडकाव्य – रस द्रोणिका – 3 – श्री रामशरण शर्मा
‘रस द्रोणिका’ खंडकाव्य एक ऐसी कृति है, जिसमें एक ऐसा पात्र के संघर्षमयी जीवन का शाश्वत एवं जीवंत वर्णन किया गया है, जो आगे चलकर समाज, देश, काल एवं इतिहास में अपना प्रभुत्व स्थापित करता है। जो भावी पीढ़ी के लिए एक सबक है कि जब जब किसी राजा या शक्तिशाली व्यक्ति ने कर्म एवं समाज के पथ-प्रदर्शक गुरु का अपमान किया है, तब-तब आचार्य द्रोण और चाणक्य जैसे महामानव का प्रादुर्भाव हुआ है। जिसने ऐसे उद्दंड, स्वार्थी व्यक्ति से समाज और देश को मुक्ति दिलाई है। आचार्य श्री रामशरण शर्मा द्वारा रचित यह एक अनुपम कृति है।
काव्य का अंश...
श्रम से थके-थके से द्विजवर, ललक उठे सुस्ताने को।
उज्जवल भाल छलकते मोती, छहर रहे छवि छाने को।
वृक्ष विशाल खड़ा था सम्मुख, जटाजूट युत बट का पेड़।
क्षितिज छत्र सा तना हुआ था, करने शीतल छाया भेंट।
दीर्घ श्वास-प्रश्वास छोड़ते, बैठ गए तब गुरु ज्ञानी।
स्वागत गान किया खग कुल ने, मधुर-मधुर कलरव बानी।
संध्या समय आन था पहुँचा, घूम माल क्षिति छहराये।
गो वृंदों की घंट-घंटियाँ बजी, धूलि नभ में छाए।
कलियाँ झुका रहीं थीं शीशें, पाकर मंद मरूत को संग।
बाग बिहंसता कुसुम वारता, गाए मधुपों ने मधु छंद।
धन्य प्रभाव महात्माओं के, जड़ भी हो जाते चैतन्य।
सत्संगति में वे भी मानो, मान रहे थे निज को धन्य।
मुनि ने देखा संध्या होते, करने चले पुण्य स्नान।
पहुँच गए सरिता के तट पर, नित्य नैमित्तिक क्रिया सिरान।
कटि पर्यंत गए जलि भीतर, लगे करन अघमर्षण जाप।
महामंत्र प्रणवाक्षर जपते, भस्मी भूत हुए सब पाप।
सूर्योप्रस्थान लगे जब करने, हुए दृष्टिगत बटुसमुदाय।
करते थे समवेत स्वरों में, सस्वर पाठ मंत्र हरषाय।
इधर दिवाकर देव अर्घ्य लें, लोप हुए शुचि अंबर तर।
उड़गन लगे झाँकने लुक छिप, उधर निशा प्यारी लखकर।
बलवानों के इति श्री होते, ज्यों सिर पोच उठाते हैं।
ऐसे इत उत जुगनू सारे, उडि-उडि चमक दिखाते हैं।
लौट पड़े थे द्विजगण सारे, अपने-अपने आश्रम ओर।
गुरु भी लौट शिला आ राजे, ध्यानावस्थित भाव विभोर।
पूरे काव्य का आनंद ऑडियो की मदद से लीजिए…
लेबल:
कविता,
दिव्य दृष्टि
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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