सोमवार, 5 सितंबर 2016
बाल कहानी - सोनपरी की सलाह
सोनपरी की सलाह... कहानी का अंश...
गोलू अपने माता-पिता का इकलौता बेटा था। उसे माता-पिता ने बहुत लाड-दुलार से पाला था। वे उसकी सारी इच्छाएँ पूरी करते। यही कारण था कि वह कुछ अधिक ही शरारती हो गया था। उसने पूरे वर्ष खूब मस्ती की थी। घर और स्कूल दोनों जगह उसने अपनी शरारतों से नाक में दम कर रखा था। उसके बाद भी लाडला होने के कारण उसे घर में कोई डाँटता न था। हाँ, स्कूल में शिक्षक जरूर उससे परेशान रहते। पूरे दिन मस्ती करने के कारण वह पढ़ाई-लिखाई से दूर ही रहता। वैसे भी पढ़ना तो उसे बिल्कुल भी पसंद नहीं था।
गोलू की मम्मी उसे समझाती, बेटे परीक्षा नजदीक आ रही है, अब तुम पढ़ाई पर ध्यान दो। मम्मी की सलाह को वह हँस कर टाल देता और बेफिक्र होकर जवाब देता- ‘मम्मी आप बेकार में ही मेरी चिंता कर रही हो। मैं तो परीक्षा में पास ही होऊँगा। आपको पता है, मैं ने अभी से रोज सोनपरी की पूजा करना शुरू कर दिया है। मैंने पढ़ा था कि सोनपरी के पास से जो माँगा जाता है, वह मिलता है।’
गोलू की बात सुनकर मम्मी हँसते हुए प्यार से बोली- बेटे, मेहनत किए बगैर कुछ भी नहीं मिलता। सोनपरी भी उन्हीं की मदद करती है, जो अपनी मदद खुद करते हैं। तुम मेहनत करोगे, तभी तुम्हें उसका फल मिलेगा। बिना मेहनत किए केवल सोनपरी की पूजा करने मात्र से वह बेचारी भी तुम्हारे लिए कुछ नहीं कर पाएगी।
गोलू को मम्मी की बात थोड़ी-बहुत समझ में आई। उसने भी सोचा, मम्मी ठीक ही तो कहती है, यदि मैं मन लगाकर पढ़ाई करूँगा, तो सोनपरी भी मेरी मदद के लिए तैयार हो जाएगी। और वह पढ़ाई के प्रति गंभीर हो गया। साथ ही वह सोनपरी की पूजा करने से भी नहीं चूकता था। मेहनत के साथ-साथ सोनपरी की पूजा भी करता था। उसे पूरा विश्वास था कि सोनपरी उसकी पढ़ाई में मदद जरूर करेगी। पढ़ाई करते हुए भी उसके आलसी मन में एकाएक यह विचार आता कि यदि एक बार सोनपरी मुझे मिल जाए, तो मैं उससे ऐसी चीज माँग लूँ कि मुझे परीक्षा में अधिक मेहनत नहीं करनी पड़े और मैं अच्छे अंकों से उत्तीर्ण भी हो जाऊँ।
सोनपरी का विचार करते हुए और थकान के कारण कब उसकी आँख लग गई, उसे पता ही नहीं चला। उसे सपना आया और सपने में सचमुच उससे मिलने सोनपरी आ गई। उसके आते ही गोलू के कमरे में स्वर्ण किरणें बिखर गईं। पूरा कमरा जगमगाने लगा। गोलू तो सोनपरी को देखता ही रह गया। साक्षात् सोनपरी मिल जाने के कारण उसकी खुशी का ठिकाना ही न रहा। वह तो सोनपरी को देखता ही रहता, यदि सोनपरी उससे कुछ न कहती। आखिर सोनपरी ने ही कहा- गोलू, तुम बहुत दिनों से मुझे याद कर रहे थे, आज मैं तुमसे ही मिलने आई हूँ। बोलो, तुम्हें मुझसे क्या चाहिए? अब गोलू को मौका मिल गया। उसने झट से कहा- दीदी, तुम मुझे कोई ऐसी जादुई चीज दे दो, जिससे मैं परीक्षा में पढ़े बिना ही उत्तीर्ण हो जाऊँ और परीक्षा में पूछे गए सभी प्रश्नों का सही-सही उत्तर लिख सकूँ।
इस पर सोनपरी ने हँसकर कहा-गोलू, मेहनत किए बिना कुछ भी नहीं मिलता। अब तुम्हीं कहो, क्या मुझसे मिलने के लिए तुमने मेरी पूजा करने में मेहनत नहीं की? मेरी पूजा करने के लिए तुमने खेलना छोड़ दिया, यहाँ तक कि रातों को भी देर तक जागते रहे।
गोलू बोला-हाँ दीदी, आप सच कहती हैं। मैं रोज रात को सोने से पहले देर तक आपका ही नाम रटता था और इसीलिए आप मुझसे मिलने के लिए आईं हैं। सोनपरी ने गोलू को समझाइश देते हुए प्यार से कहा-तुमने मुझसे मिलने के लिए बहुत मेहनत की है, तो तुम मेरा कहना अवश्य मानोगे। क्यों ठीक है ना? तुम पढ़ाई में भी थोड़ी से मेहनत कर लो, बस कुछ ही दिनों की बात है। फिर तो मस्ती ही मस्ती है। गर्मी की छुट्टियाँ लगते ही फिर से मौज-मस्ती का दौर शुरू हो जाएगा। तुमने मेरी पूजा करने में जितना समय लगाया, उतने ही समय पढ़ाई कर लो, तुम्हारी इच्छा अवश्य पूरी होगी। क्या गोलू की इच्छा पूरी हो पाई? सोनपरी ने उसकी मदद की या नही? यह जानने के लिए ऑडियो की मदद लीजिए...
लेबल:
दिव्य दृष्टि,
बाल कहानी
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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