शनिवार, 10 सितंबर 2016
विज्ञान कविता – डायनामाइट – सुधा अनुपम
कविता का अंश….
‘नोबल’ शब्द पड़े कानों में,
पुरस्कार की याद दिलाए,
चलो आज करते हैं चर्चा,
कैसे ये अस्तित्व में आए।
नाइट्रोजन ग्लिसरीन बेहद,
खतरनाक विस्फोटक था,
जिसके जलजले के आगे,
कोई न संकट मोचक था।
मि. अल्फ्रेड नोबल जी ने,
ढक्कन ऐसा बना लिया,
जिसने नाइट्रोजन ग्लिसरीन पर,
अंकुश अपना लगा दिया।
आज भी विस्फोटक के ऊपर,
ढक्कन ही तो लगते हैं,
जिनके खुलने के बाद ही,
विस्फोटक सब फटते हैं।
नाइट्रोजन ग्लिसरीन बला थी,
आसानी से न मानी
यदा-कदा फिर फटकर इसने,
रखी जारी मनमानी।
ड्राई सिलिका में नोबल ने,
विस्फोटक को डुबो दिया,
जो चाहे कर सकता मानव,
बुरी बला को बता दिया।
सन् 1866 में फिर,
डायनामाइट का जन्म हुआ,
उसके बाद जेलजीनाइट का,
दुनिया में आगमन हुआ।
इस अधूरी कविता का पूरा आनंद ऑडियो की मदद से लीजिए…
लेबल:
कविता,
दिव्य दृष्टि
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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