गुरुवार, 22 सितंबर 2016
लेख – बिल्ली पुराण – प्रो. एस. सिवादास
प्रो. एस सिवादास केरल शास्त्र साहित्य परिषद के सक्रिय कार्यकर्ता के रूप में पहचाने जाते हैं और लंबे समय से खासतौर पर बच्चों के साहित्य से जुड़े हैं। आपने केरल शास्त्र साहित्य परिषद की मशहूर बाल विज्ञान मासिक पत्रिका यूरेका का दस सालों तक कुशल सम्पादन किया और उसे भारत की आदर्श बाल विज्ञान पत्रिका बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यूरेका एक मलयालम मासिक पत्रिका है। प्रो. एस. सिवादास ने बच्चों के साथ प्रभावी संपर्क कायम करने के लिए वर्षों शोध करके लेख, कहानियाँ, नाटक, कठपुतली, पहेली, चित्रकथाएँ, कार्टून आदि के माध्यमों को अपनाया। यहाँ हम उनके विज्ञान से जुड़े हुए बाल लेख का हिंदी भावानुवाद ऑडियो के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं। भावानुवाद का कार्य किया है, डॉ. राणा प्रताप सिंह और राकेश अन्दानियाँ ने।
लेख का अंश… बिल्ली का अपना एक अलग व्यक्तित्व होता है। उसको अपने आप पर बहुत गर्व है। वह अपने आपको एक बहुत महत्वपूर्ण व्यक्ति मानती है। वह अपने आप को किसी का गुलाम नहीं समझती है। एक पालतू कुत्ता अपने मालिक के प्रति बहुत वफादार और विनम्र होगा। वह बहुत आज्ञाकारी और स्वामीभक्त होगा किंतु क्या बिल्ली के बारे में ऐसा सोचा जा सकता है? बिल्ली के साथ ऐसा कुछ भी नहीं है। यहाँ तक कि कोई उसे प्यार करता है या सहलाता है, तब भी उसके अंदर गुलामी की भावना नहीं आती। थोड़ी-सी भी नहीं। बल्कि वह तो यही सोचती है कि वह इसी के काबिल है। कुत्ता जमीन पर सोता है। उसे रात में सोने के लिए ज्यादा समय भी नहीं मिलता। लेकिन बिल्ली को सोने के लिए घर मं सबसे आरामदेह जगह मिल जाती है। अगर संभव हुआ तो वह बिस्तर पर भी सो जाएगी। अगर उसे बिस्तर या कुर्सी नहीं मिल पाए तब भी वह बारिश और ठंड से बचने के लिए कोई अच्छी-सी जगह खोज ही लेती है। उसे सहलाया जाना बहुत अच्छा लगता है। ऐसा शायद इसलिए है कि वह अपने आपको शाही परिवार से यानी कि शेर और चीते के परिवार से जुड़ा हुआ मानती है। आदमी आदिकाल से बिल्ली पालता आया है। भारत, मिस्र, चीन आदि देशों में बिल्ली पालन हुआ करता था और आज भी होता है। प्राचीन मिस्र में तो बिल्ली की पूजा भी की जाती थी। उसकी मूर्ति मंदिरों में स्थापित की जाती थी। जब बिल्ली मर जाती थी, तो उसकी ममी बनाई जाती थी। बिल्ली का मकबरा या समाधि बनाई जाती थी। बिल्ली के बारे में ऐसी ही रोचक जानकारी ऑडियो की मदद से प्राप्त कीजिए…
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दिव्य दृष्टि,
लेख
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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