गुरुवार, 8 सितंबर 2016
कविता – वह एक आदमी – कृष्ण कुमार अस्थाना
कविता का अंश…
शहर शमशान के किसी अँधेरे कोने में मरा पड़ा है। घंटाघर में वक्त की कैंची, कबूतरों के पर कतर रही है। मौसम के साथ वक्त के हाशिए पर, आदमी और उसकी आत्मा की, मौत दर्ज कर दी गई है। वक्त की इस नई सतह पर, हिजड़ों की एक पूरी पीढ़ी, अतीत और भविष्य पर, बहस में जुटी है। मृत आदमी और जीवित नाग के बीच, संबंध को तलाशती। बुद्धिमानों का अंधापन और अंधों का विवेक, मापने के लिए, हिटलरी कुर्सी अपने पंजों के नीचे से, कुछ शब्द निकालकर रख देती है। अचानक… सड़कें, इश्तिहारों के रोजनामचों में तब्दील हो जाती है…
इस अधूरी कविता का पूरा आनंद लेने के लिए ऑडियो की मदद लीजिए…
लेबल:
कविता,
दिव्य दृष्टि
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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