सोमवार, 5 सितंबर 2016
बाल कविता - छुक छुक गाड़ी….
कविता का अंश…
छुक छुक छुक छुक करती छुक छुक गाड़ी चली,
सबसे आगे काला हाथी, इंजन वह कहलाता।
हाथी पर बैठा खरगोश, ड्राइवर वह कहलाता,
बड़े –बड़े फल वो हाथी को देता जाता।
जंगल में मचता कोलाहल पक्षी घबरा जाते,
लंबी गरदनवाले जिराफ भाई जंगल देखते जाते,
भेड़िया और सियार उसके पाँव से टकराए।
काना कौआ एक आँख से जंगल देखता जाए,
हिरन और साँभर कुलाँचे मारते जाए।
कोट पहनकर बंदर भाई डिब्बे-डिब्बे जाए,
सबकी टिकट जाँच कर टी.टी.ई. वो कहलाए।
सबसे पीछे झंडी लेकर रीछ भाई जाए,
पीप पीप पीप पीप सीटी बजाए, गाड़ी चलती जाए।
इस कविता का पूरा आनंद लेने के लिए ऑडियो की मदद लीजिए…
लेबल:
दिव्य दृष्टि,
बाल कविता
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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