मंगलवार, 13 सितंबर 2016

अकबर–बीरबल की कहानी – 15

बीरबल का न्याय… कहानी का अंश… एक बार एक स्त्री भरी सभा में एक मनुष्य को साथ लेकर आई और बोली – जहाँपनाह, इस मनुष्य ने मेरे सारे गहने छीन लिए हैं। बादशाह ने उस मनुष्य से इसका कारण पूछा तो वह हाथ जोड़कर बोला – हुजूर, मैं परदेसी हूँ। दिल्ली शहर देखने के लिए आया था। यह स्त्री मुझे रास्ते में मिली और आपके दर्शन कराने का वादा करके मुझे यहाँ ले आई है। आपके दर्शन की लालसा से मैं इसके पीछे-पीछे चला आया। मैं बिलकुल सच कह रहा हूँ, हुजूर। मैंने इसके गहने नहीं छीने हैं। इस पर वह औरत बोली – आलीजहाँ, यह मनुष्य बिलकुल झूठ बोल रहा है। मेरे सारे जेवर छीनकर अब अपने आपको पाकसाफ बता रहा है। बादशाह दोनों की बातों से कुछ भी नतीजा नहीं निकाल पाए। उन्होंने दरबार में बैठे अपने अन्य दरबारियों से इसके बारे मे पूछा लेकिन अन्य दरबारी भी इस बात को सुनकर किसी एक के पक्ष में राय कायम नहीं कर सके। अंत में बादशाह ने बीरबल को इस फैसले का भार सौंप दिया। बीरबल ने क्या न्याय किया? क्या उसके न्याय से सभी सहमत हुए? बादशाह को बीरबल के न्याय से खुशी हुई या नाराजगी? दूसरे दरबारियों ने बीरबल के इस न्याय का समर्थन किया या विरोध? कौन झूठ बोल रहा था? वह स्त्री या वह मनुष्य? इन सारी जिज्ञासाओं का समाधान ऑडियो की मदद से कीजिए…

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