शुक्रवार, 23 सितंबर 2016
खंडकाव्य – रस द्रोणिका – 2 – श्री रामशरण शर्मा
‘
रस द्रोणिका’ खंडकाव्य एक ऐसी कृति है, जिसमें एक ऐसा पात्र के संघर्षमयी जीवन का शाश्वत एवं जीवंत वर्णन किया गया है, जो आगे चलकर समाज, देश, काल एवं इतिहास में अपना प्रभुत्व स्थापित करता है। जो भावी पीढ़ी के लिए एक सबक है कि जब जब किसी राजा या शक्तिशाली व्यक्ति ने कर्म एवं समाज के पथ-प्रदर्शक गुरु का अपमान किया है, तब-तब आचार्य द्रोण और चाणक्य जैसे महामानव का प्रादुर्भाव हुआ है। जिसने ऐसे उद्दंड, स्वार्थी व्यक्ति से समाज और देश को मुक्ति दिलाई है। आचार्य श्री रामशरण शर्मा द्वारा रचित यह एक अनुपम कृति है।
काव्य का अंश...
पावन सूर्य, चंद्र कुल वंशी, छोड़ बिसारे हैं कुलकानि।
कैसा कठिन काल आ पहुँचा, द्विज कुल के करने अपमान।
बीरब्रती, गंगासुत तेरी, अद्भुत सुनी कहानी है।
क्या वंशों की आन न तुझको, या भूला निज पानी है।
जापर विपत्ति पड़े सोइ जाने, तुमको क्या अपने पर के।
आरत बोल ब्राह्मणि बोलत, आए तभी द्रोण घर पे।
पावन कुटिया में क्यों कल्मष, शून्य ठौर में क्यों आवाज?
कैसी घटी कौन-सी घटना, हतप्रभ खड़े न समझे राज।
संयत हो मुनिवर तब बोले, विषय बिचारि बचन सरसात।
तप्त ताम्र सा क्यों मुख मंजुल, सत्ये! सत्य कहो सब बात।
उलझे केश वेश पट बिखरे, अश्रु सिक्त क्यों अरुण नयन।
बोलो क्या कुछ हुआ अचानक, बोली तब वह रुद्ध बयन।
नाथ! अनर्थ हुआ कुछ ऐसा, कहते अंतस फटता है।
सहा न जाता बिना कहे भी, कहने को नहीं जँचता है।
नित्य दिनों की भाँति आज भी, खेलने को था गया कुमार।
बाल सखन बीच जाने कैसे, पलक झपकते हो गए रार।
लगे चिढ़ाने इनको मिलकर, एक-एक से कर-कर व्यंग्य।
कुछ से हो गई हाथापाई, भगदड़ मचा निराले ढंग।
एक ने हाथ पकड़ कर पूछा, बड़े बली तुम लगते हो।
बड़े-बड़े से लेते टक्कर, दूधपायी बन ठगते हो?
हमें बताओ साथी सच्चे, दूध पीया कि देखा है?
कडुआ, तीता, मीठा, सीठा, कहो स्वाद क्या लेखा है?
गोरस क्या, है भूतल अमृत, शुचि सर्वोत्तम मधुर आहार।
देखो, कामधेनु रस पीकर, किए स्वर्ग पर सुर अधिकार।
पूरे काव्य का आनंद ऑडियो की मदद से लीजिए…
लेबल:
कविता,
दिव्य दृष्टि
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
Post Labels
- अतीत के झरोखे से
- अपनी खबर
- अभिमत
- आज का सच
- आलेख
- उपलब्धि
- कथा
- कविता
- कहानी
- गजल
- ग़ज़ल
- गीत
- चिंतन
- जिंदगी
- तिलक हॊली मनाएँ
- दिव्य दृष्टि
- दिव्य दृष्टि - कविता
- दिव्य दृष्टि - बाल रामकथा
- दीप पर्व
- दृष्टिकोण
- दोहे
- नाटक
- निबंध
- पर्यावरण
- प्रकृति
- प्रबंधन
- प्रेरक कथा
- प्रेरक कहानी
- प्रेरक प्रसंग
- फिल्म संसार
- फिल्मी गीत
- फीचर
- बच्चों का कोना
- बाल कहानी
- बाल कविता
- बाल कविताएँ
- बाल कहानी
- बालकविता
- भाषा की बात
- मानवता
- यात्रा वृतांत
- यात्रा संस्मरण
- रेडियो रूपक
- लघु कथा
- लघुकथा
- ललित निबंध
- लेख
- लोक कथा
- विज्ञान
- व्यंग्य
- व्यक्तित्व
- शब्द-यात्रा'
- श्रद्धांजलि
- संस्कृति
- सफलता का मार्ग
- साक्षात्कार
- सामयिक मुस्कान
- सिनेमा
- सियासत
- स्वास्थ्य
- हमारी भाषा
- हास्य व्यंग्य
- हिंदी दिवस विशेष
- हिंदी विशेष
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें