शुक्रवार, 23 सितंबर 2016
खंडकाव्य – रस द्रोणिका – 5 – श्री रामशरण शर्मा
‘रस द्रोणिका’ खंडकाव्य एक ऐसी कृति है, जिसमें एक ऐसा पात्र के संघर्षमयी जीवन का शाश्वत एवं जीवंत वर्णन किया गया है, जो आगे चलकर समाज, देश, काल एवं इतिहास में अपना प्रभुत्व स्थापित करता है। जो भावी पीढ़ी के लिए एक सबक है कि जब जब किसी राजा या शक्तिशाली व्यक्ति ने कर्म एवं समाज के पथ-प्रदर्शक गुरु का अपमान किया है, तब-तब आचार्य द्रोण और चाणक्य जैसे महामानव का प्रादुर्भाव हुआ है। जिसने ऐसे उद्दंड, स्वार्थी व्यक्ति से समाज और देश को मुक्ति दिलाई है। आचार्य श्री रामशरण शर्मा द्वारा रचित यह एक अनुपम कृति है।
काव्य का अंश….
था समीप उद्यान बड़ा, सब खेल रहे थे सुंदर गेंद।
उछल गई वह दूर बहुत, बालक घेरे में दे सेंध।
गिरी गेंद जा कूप के भीतर, जनु भवसागर में आत्मा।
गेंद विहीन खिन्न थे सारे, तब ही पहुँचे महात्मा।
कर कर युक्ति सभी थे हारे, गला दाल न किसी का था।
बिकल ताकते इत उत सारे, ज्यों इंतजार ऋषि का था।
जाकर निकट मुनि ने देखा, परख आए सब हाल-हवाल।
हँस कर वे तृण शर ले फूँके, बाहर हुई गेंद तत्काल।
लपक पड़े कुछ कंदुक लेने, पर गुरु बोले थम जाओ।
कहो कौन कुल के दीपक हो, नाम गोत्र तो बतलाओ?
खिसक गए पीछे नत सिर से, सैन बड़े भ्राता की पा।
बढ़ा युधिष्ठिर इत दाँए से, बाँए बढ़ा सुयोधन आ।
मुनि ने कर संकेत हाथ से, ठट के ठट सब बैठाए।
साक्षात्कार हुआ क्षण भर में, हँसी ठिठोली मन भाए।
कर प्रणाम आशीषें लेकर, विदा हुए सारे शिष गण।
दौड़ पड़े सब आतुर गृह को, मची राह पे फिर भगदड़।
लग गई दौड़ की थी बाजी, सबके मन था नव उल्लास।
कितने गिरे, भिरे पुनि दौड़े, पहुँचे सभी पितामह पास।
काहू की थी ठुकी कोहनी, काहू के घुटने में चोट।
बिखरे केश वसन काहू के, कोऊ फफक रहा करि ओट।
पोतों से घिरे थे पितामह, अस्त-व्यस्त हो गए सामान।
ठेलम ठेल कि धक्के-मुक्के, चीख-चाख भर डाले कान।
स्नेह सिक्त कर उठा-उठा, शांत-शांत कहते हँसते।
पूछ रहे क्या बात हुई, पुचकार डाँट कसते-कसते।
पूरे काव्य का आनंद ऑडियो की मदद से लीजिए…
लेबल:
कविता,
दिव्य दृष्टि
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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