गुरुवार, 8 सितंबर 2016
कविताएँ - 1 - शंभुनाथ तिवारी
बदल गए हैं गाँव... कविता का अंश...
सिमटे स्नेह टूटते रिश्ते कितने बदल गए हैं गाँव!
परदेशी की बाट जोहती आँखें अब हो गई कहानी,
कोयल-मोर-पपीहे की वह टेर कहीं खो गई सुहानी,
अब मुड़ेर से नहीं सुनाई देता है कौवे का काँव।
वे रिश्तोंवाले संबोधन भी देते हैं नहीं सुनाई,
भाईचारा-प्यार-मोहब्बतवाली बातें हुईं पराई,
मधुर स्नेह-संबंधों में कब जाने कौन अड़ा दे पाँव।
सूखे ताल-तलैया-पोखर पनघट पर छाई वीरानी,
सूनी पड़ी हुई चौपालें अब अलाव की बात पुरानी,
कहाँ गईं छितवन की छाँहें, उस बूढ़े बरगद की छाँव।
रिश्ते-नातों की बातों पर हो जाती फीकी मुस्कानें,
बात-बात पर पड़ जाते हैं पीछे लोग मुट्ठियाँ ताने,
कहाँ बटोही करे बसेरा कोई नहीं ठिकाना-ठाँव।
चले गए जो शहर गाँव की यादें उनको नहीं सतातीं,
घरवाले रो-रोकर चाहे लिखवाए पाती पर पाती,
भूल गए ममता का आँचल दादा जी के दुखते पाँव।
इस अधूरी कविता के साथ ही ऐसी ही अन्य भावपूर्ण कविता का आनंद ऑडियो की मदद से लीजिए....
संपर्क - s.tiwariamu@gmail.com
लेबल:
कविता,
दिव्य दृष्टि
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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