शनिवार, 24 सितंबर 2016
खंडकाव्य – रस द्रोणिका – 9 – श्री रामशरण शर्मा
‘रस द्रोणिका’ खंडकाव्य एक ऐसी कृति है, जिसमें एक ऐसा पात्र के संघर्षमयी जीवन का शाश्वत एवं जीवंत वर्णन किया गया है, जो आगे चलकर समाज, देश, काल एवं इतिहास में अपना प्रभुत्व स्थापित करता है। जो भावी पीढ़ी के लिए एक सबक है कि जब जब किसी राजा या शक्तिशाली व्यक्ति ने कर्म एवं समाज के पथ-प्रदर्शक गुरु का अपमान किया है, तब-तब आचार्य द्रोण और चाणक्य जैसे महामानव का प्रादुर्भाव हुआ है। जिसने ऐसे उद्दंड, स्वार्थी व्यक्ति से समाज और देश को मुक्ति दिलाई है। आचार्य श्री रामशरण शर्मा द्वारा रचित यह एक अनुपम कृति है।
काव्य का अंश….
एकलव्य मुदित कर जोड़ कहा, आज्ञा दें, क्या लाऊँ भेंट।
कहा द्रोण दो दक्ष अंगूठा, मन की सारी दुविधा भेंट।
था बीरब्रती, वह सत्य व्रती, तत्काल काट उत बढ़ा दिया।
शिष्यों की भक्ति परीक्षा में, गुरुकुल को टीका चढ़ा दिया।
हर आत्मा से चीत्कार उठी, दिनकर डूबा मुख लाल किए।
सब लौट गए निज नगरी को, हर्ष ग्लानि उर भाल लिए।
एक दिवस कुटिया में बैठे, गुरु करते फिर सोच विचार।
शिष्यों से बोले मुस्काते, आज परीक्षा घड़ी तुम्हार।
देखो उत्तर दिशा वृक्ष के, शीर्ष भाग पर पंछी एक।
साध निशाना बाण चलाओ, मस्तक काट दूर दो फेंक।
इतना कह वे चुप हो गए, बोले सब तैयार हैं हम।
आज्ञा की बस देरी समझें, नहीं किसी से कोई काम।
पैनी दृष्टि डाल सभी पर, बोले प्रथम युधिष्ठिर आओ।
आसन ले निज लक्ष्य संभालो, जो पूछे सब सांच बताओ।
बोले, क्या तुम देख रहे हो? मेरे संग तब अनुज सारे।
पक्षी,पेड़, लता, पत्रादिक, पुष्प, फलादि जे न्यारे।
कहा युधिष्ठिर ने नतमस्तक, हाँ, गुरुवर सब देख रहा।
रूष्ट द्रोण बोले हट जाओ, तब दुर्योधन आगे बढ़ा।
प्रश्न यही दुहराए गुरु ने, वैसा ही उत्तर पाया।
कहा भीम ने हँसकर आगे, अंधज की अंधी काया।
बाण चढ़ा नित लक्ष्य बाँधकर, बोला दें आज्ञा भगवन।
पूछा द्रोण तुम्हें क्या दिखता, कहो लक्ष्य? दृष्टि बंधन।
प्रभो, आप सब बांधव दिखते, तरु, शाखाएँ,पत्ते –फूल।
चलती ढेर चिटिंयों के दल, साफ-साफ दिखता मग मूल।
पूरे काव्य का आनंद ऑडियो की मदद से लीजिए…
लेबल:
कविता,
दिव्य दृष्टि
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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