शनिवार, 24 सितंबर 2016
खंडकाव्य – रस द्रोणिका – 7 – श्री रामशरण शर्मा
‘रस द्रोणिका’ खंडकाव्य एक ऐसी कृति है, जिसमें एक ऐसा पात्र के संघर्षमयी जीवन का शाश्वत एवं जीवंत वर्णन किया गया है, जो आगे चलकर समाज, देश, काल एवं इतिहास में अपना प्रभुत्व स्थापित करता है। जो भावी पीढ़ी के लिए एक सबक है कि जब जब किसी राजा या शक्तिशाली व्यक्ति ने कर्म एवं समाज के पथ-प्रदर्शक गुरु का अपमान किया है, तब-तब आचार्य द्रोण और चाणक्य जैसे महामानव का प्रादुर्भाव हुआ है। जिसने ऐसे उद्दंड, स्वार्थी व्यक्ति से समाज और देश को मुक्ति दिलाई है। आचार्य श्री रामशरण शर्मा द्वारा रचित यह एक अनुपम कृति है। काव्य का अंश....
कूंजत बिहंग मनोहर बानी, भांति-भांति स्वर भरि तानें।
गुटूर गूँ कहीं करत कबूतर, झुंड –झुंड चुनि-चुनि दानें।
कल-कल करते झरते झरने, हरे-भरे पेड़ों की छाँह।
श्रम बिहाइ पुनि चलत बटोही, पुलकित तन-मन नव उत्साह।
कहीं-कहीं मग में आ जाते, मरकट शावक रीछ मयूर।
कहीं शिला, गड्ढे बड़ झाड़ी, रोक-टोक करते भरपूर।
पर हय थे अपने मनमाते, तनिक नहीं करते उर शोच।
विघ्न बाधाएँ उनके होते, जो होते मन ही के पोच।
दुर्गम पथ अरु लंबी दूरी, शून्य शांत अनबूझे ठौर।
दौड़ रहे घोड़े सब देखत, आगे-पीछे गरदन मोर।
जंगल छोर मिले बनवासी, हृष्ट-पुष्ट वे परम प्रसन्न।
तन के काले मन के उजले, प्रकृति गोद में पले विपन्न।
धूल धूसरित बदन गठीले, श्रम सीकर युत खुले खुल।
गिरि गहूर बन सरिता दुर्गम, कण-कण से वे मिलेघुले।
भौतिकता से दूर बहुत ये, स्वाभिमानी जीवन स्वच्छंद।
सरल-तरल उर माखन जैसे, सदा संतोषी परमानंद।
इतने में आ गया दौड़ रथ, तजि के बन मैदानी छोर।
सहज चाल से घोड़े दौड़े, मानो निकट पहुँचते ठोर।
अरहर और बाजरे के संग, झूम रही थी हरियाली।
कहीं झूमती धान की फसलें, पहनी सोने की बाली।
गागर में सागर भरने को, गन्ने की थी खड़ी कतार।
पोर-पोर थे पुष्ट रसीले, श्रम सेवा फल देने हार।
कहीं झूमती गाती जाती, ग्राम वधू सुंदर संगीत।
घूरे में सोने उपजाते, पृथ्वी पूतों की यह रीत।
पूरे काव्य का आनंद ऑडियो की मदद से लीजिए…
लेबल:
कविता,
दिव्य दृष्टि
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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