शुक्रवार, 2 सितंबर 2016
बाल कहानी - गिरते पत्तों का संदेश - भारती परिमल
कहानी का अंश…
दीपू एक नटखट बालक था। स्कूल में उसकी शरारतों से जहाँ शिक्षक परेशान रहते थे, तो घर में उसके आलसीपन और लापरवाही से मम्मी-पापा को भी परेशानियों का सामना करना पड़ता था। उसे सबसे ज्यादा मजा आता था, फूल-पत्तों को तोड़ने में और पौधों को उखाड़ फेंकने में। स्कूल में जब किसी दिन बच्चों को मैदान की या बगीचे की सफाई का काम सौंपा जाता, तो उस दिन तो दीपू के मजे हो जाते। वह पत्तों के साथ फूलों को भी तोड़ देता और कई छोटे-छोटे पौधों को तो जड़ सहित उखाड़ कर फिर से गमले में लगा देता। उसे फूलों की पंखुड़ियों को मसलना, पेड़ की शाखाओं को तोड़ना, चिड़िया के घोंसले को नष्ट करना ये सभी काम करने बहुत अच्छे लगते। उसके दोस्त भी उसकी शरारतों में उसके साथ शामिल होते। वे सभी मिल कर कोई न कोई ऐसी शरारत करते कि जिससे बेचारे मूक पेड़-पौधे और पक्षियों को परेशानी होती।
दिसम्बर की छुट्टियों में जब उन्हें स्कूल की तरफ से पिकनिक ले जाया गया, तो वहाँ दीपू और उसके सभी दोस्तों ने मिलकर बगीचे के बहुत सारे फूल तोड़ लिए और उन्हें बिखेर दिया। इतने से ही उन्हें संतोष न हुआ तो पेड़़ पर चढ़कर चिड़िया का घोंसला भी नीचे गिरा दिया। बेचारी चिड़िया के चार अंडे फूट गए और वह चीं-ची करती चिल्लाती ही रह गई। शीना, मीना और उसकी सहेलियों ने उनकी शिकायत गेम्स टीचर से कर दी, फिर क्या था गेम्स टीचर ने उन्हें ऐसा डाँटा कि उनका पिकनिक का मजा ही जाता रहा।
एक दिन पापा ने उसे गमलों में पानी डालने के लिए कहा। उसे तो यह काम भाता ही नहीं था, सो उसने हाँ कह कर आदेश टाल दिया। बाद में जब पिता ने देखा कि सारे गमले सूखे ही सूखे हैं, तो उन्होंने दीपू से उसका कारण पूछा। दीपू ने फिर बहाना बनाया और कहने लगा कि मैं भूल गया था। ऐसा कहकर वह दूसरे काम में लग गया। उस दिन तो गमलों में पापा ने पानी डाल दिया। कुछ दिन बाद पापा ने सख्ती के साथ दीपू से कहा कि आज तुम्हें गमलों में पानी डालना ही है। ऐसा कह कर वे किसी काम से बाहर चले गए।
दीपू गमलों में पानी डालने लगा। पानी डालते हुए अचानक उसे शरारत सूझी- कुछ गमलों को तो उसने पानी से लबालब भर दिया और कुछ छोटे-छोटे पौधों को उखाड़ दिया। ऐसा करते हुए उसे बहुत अच्छा लगा। अपनी शरारत पर वह बहुत खुश था। फिर पापा की डाँट के डर से उसने उखाड़े हुए पौधों को फिर से गमले में ऐसे ही रख दिया। षाम को पापा ने पौधों की जो हालत देखी तो उन्हें दीपू की कारस्तानी का पता चला। उन्हें गुस्सा तो बहुत आया पर उन्होंने धैर्य से काम लिया। वे दीपू का स्वभाव जानते थे कि ये शरारती है, किंतु पेड़-पौधो के प्रति उसके मन में जरा भी दया भाव नहीं है, यह बात उन्हें दुःखी कर गई। उन्होंने दीपू के मन में पेड़-पौधों के प्रति प्यार जगाने का संकल्प लिया। आखिर दीपू के पापा ने दीपू के मन में पेड़-पौधों के प्रति प्रेम और दया भाव जगाने के लिए क्या किया? क्या वे दीपू का स्वभाव बदल पाए? इन सवालों के जवाब जानने के लिए ऑडियो की मदद लीजिए…
लेबल:
दिव्य दृष्टि,
बाल कहानी
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
Post Labels
- अतीत के झरोखे से
- अपनी खबर
- अभिमत
- आज का सच
- आलेख
- उपलब्धि
- कथा
- कविता
- कहानी
- गजल
- ग़ज़ल
- गीत
- चिंतन
- जिंदगी
- तिलक हॊली मनाएँ
- दिव्य दृष्टि
- दिव्य दृष्टि - कविता
- दिव्य दृष्टि - बाल रामकथा
- दीप पर्व
- दृष्टिकोण
- दोहे
- नाटक
- निबंध
- पर्यावरण
- प्रकृति
- प्रबंधन
- प्रेरक कथा
- प्रेरक कहानी
- प्रेरक प्रसंग
- फिल्म संसार
- फिल्मी गीत
- फीचर
- बच्चों का कोना
- बाल कहानी
- बाल कविता
- बाल कविताएँ
- बाल कहानी
- बालकविता
- भाषा की बात
- मानवता
- यात्रा वृतांत
- यात्रा संस्मरण
- रेडियो रूपक
- लघु कथा
- लघुकथा
- ललित निबंध
- लेख
- लोक कथा
- विज्ञान
- व्यंग्य
- व्यक्तित्व
- शब्द-यात्रा'
- श्रद्धांजलि
- संस्कृति
- सफलता का मार्ग
- साक्षात्कार
- सामयिक मुस्कान
- सिनेमा
- सियासत
- स्वास्थ्य
- हमारी भाषा
- हास्य व्यंग्य
- हिंदी दिवस विशेष
- हिंदी विशेष
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें