बुधवार, 14 सितंबर 2016
कविता - रामेश्वर दयाल कांबोज हिमांशु - हिंदी दिवस विशेष - 5
कविता का अंश...
शृंगार है हिंदी...
खुसरो के हृदय का उद्गार है हिंदी।
कबीर के दोहों का संसार है हिंदी।।
मीरा के मन की पीर बन गूँजती घर-घर।
सूर के सागर-सा विस्तार है हिंदी।।
जन-जन के मानस में, बस गई गहरे तक।
तुलसी के 'मानस' का विस्तार है हिंदी।।
रहीम का जीवन-अनुभव बोलता इसमें।
रसखान के सुरस की रसधार है हिंदी।।
दादू और रैदास ने गाया है झूमकर।
छू गई है मन के सभी तार है हिंदी।।
'सत्यार्थप्रकाश' बन अँधेरा मिटा दिया।
टंकारा के ऋषि की टंकार है हिंदी।।
गांधी की वाणी बनी भारत जगा दिया।
सुराज के गीतों की ललकार है हिंदी।।
'कामायनी' का 'उर्वशी' का रूप है इसमें।
'आँसू' की करुण, सहज जलधार है हिंदी।।
प्रसाद ने हिमाद्रि से ऊँचा उठा दिया।
निराला की 'वीणा' की झंकार है हिंदी।।
पीड़ित की पीर घुल यह 'गोदान' बन गई।
भारत का है गौरव, शृंगार है हिंदी।।
'मधुशाला' की मधुरता इसमें घुली हुई
दिनकर के 'द्वापर' की हुंकार है हिंदी।।
इस अधूरी कविता का पूरा आनंद लेने के लिए ऑडियो की मदद लीजिए....
लेबल:
कविता,
दिव्य दृष्टि
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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बहुत सुन्दर . .
हिंदी दिवस की शुभकामनाएं
हिंदी है हम , वतन हैं हम
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर . . हिंदी हमारी पहचान है