शुक्रवार, 16 सितंबर 2016
लघुकथा - सुराख वाले छप्पर - आशीष त्रिवेदी
बस्ती आज सुबह सुबह चंदा के विलाप से दहल गई. उसका पति सांप के डसने के कारण मर गया था. यह मजदूरों की बस्ती थी जो छोटे मोटे काम कर जैसे तैसे पेट पालते थे. आभाव तथा दुःख से भरे जीवन में मर्दों के लिए दारू का नशा ही वह आसरा था जहाँ वह गम के साथ साथ खुद को भी भूल जाते थे. औरतें, बच्चों का मुख देख कर दर्द के साथ साथ अपने मर्दों के जुल्म भी सह लेती थीं.
चंदा का ब्याह अभी कुछ महिनों पहले ही हुआ था. उसके पति को भी दारु पीने की आदत थी. वह रोज़ दारू पीकर उसे पीटता था. कल रात भी नशे की हालत में घर आया. उसने चंदा से खाना मांगा. चंदा ने थाली लाकर रख दी. एक कौर खाते ही वह चिल्लाने लगा "यह कैसा खाना है. इसमें नमक बहुत है." इतना कह कर वह उसे पीटने लगा. लेकिन कल हमेशा की तरह पिटने के बजाय चंदा ने प्रतिरोध किया. नशे में धुत् अपने पति को घर के बाहर कर वह दरवाज़ा बंद कर सो गई. कुछ देर दरवाज़ा पीटने के बाद उसका पति बाहर फर्श पर ही सो गया.
सुबह जब चंदा उसे मनाकर भीतर ले जाने आई तो उसने उसे मृत पाया. उसके मुंह से झाग निकल रहा था और शरीर पर सांप के डसने का निशान था.
चंदा के घर के सामने बस्ती वाले जमा थे.रोते -रोते चंदा के आंसू सूख गए थे. दुःख की जगह चिंता ने ले ली थी. घर में कानी कौड़ी भी नही थी. ऐसे में अपने पति की अर्थी का इंतजाम कैसे करेगी. उसने सोंचा कि बस्ती वालों से पैसे मांग ले पर किससे मांगती? सभी घरों की हालत तो एक जैसी थी.
इस लघुकथा का आनंद ऑडियो की मदद से लीजिए...
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दिव्य दृष्टि,
लघुकथा
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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