मंगलवार, 20 सितंबर 2016
अकबर-बीरबल की कहानी – 18
चार मूर्ख... कहानी का अंश...
एक बार बादशाह अकबर ने बीरबल को आज्ञा दी – बीरबल, चार ऐसे मूर्ख खोजकर लाओ जो एक से बढ़कर एक हो। बादशाह की आज्ञानुसार बीरबल नगर में ढूँढ़ने निकल पड़े। उन्होंने रास्ते में एक मनुष्य देखा, जो एक थाल में जोड़े, बीड़े और मिठाई लिए बड़ी शीघ्रता से जा रहा था। बीरबल ने बड़ी कठिनाई से उसे रोककर कहा, भाई, यह सामान कहाँ ले जा रहे हो? उसने कहा – मेरी स्त्री ने दूसरा पति किया है, जिससे उसके पुत्र उत्पन्न हुआ है, मैं उसी के लिए बधावा लेकर जा रहा हूँ। बीरबल ने उसे अपन साथ ले लिया। और आगे चल कर थोड़ी दूर जाने पर उसे एक और मनुष्य मिला, जो घोड़ी पर सवार था और सिर पर घास का बोझ रखे हुए था। बीरबल ने उससे इसका कारण पूछा कि भाई तुम ये घास का बोझ अपने सिर पर क्यों रखे हुए हो? वह मनुष्य बोला – मेरी घोड़ी गर्भिणी है। इसलिए अपने सिर पर घास का बोझ रख कर इस पर बैठा हूँ। दोनों का बोझ उठाने पर यह थक जाएगी। बीरबल ने उसको भी अपने साथ ले लिया और फिर दोनों के साथ बादशाह के सामने दरबार में हाजिर हुआ और बोला – हुजूर, चारों मूर्ख हाजिर है। बादशाह ने देखा और कहा – मुझे तो केवल दो ही दिखाई दे रहे हैं। दो और कहाँ है? तब बीरबल ने क्या जवाब दिया होगा? क्या बादशाह अकबर, बीरबल के जवाब से प्रसन्न हुए होंगे? आपके अनुसार चार मूर्ख कौन हो सकते हैं? इन जिज्ञासाओं के समाधान के लिए ऑडियो की मदद लीजिए....
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दिव्य दृष्टि,
बाल कहानी
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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