शनिवार, 24 सितंबर 2016
खंडकाव्य – रस द्रोणिका – 11 (अंतिम भाग) – श्री रामशरण शर्मा
‘रस द्रोणिका’ खंडकाव्य एक ऐसी कृति है, जिसमें एक ऐसा पात्र के संघर्षमयी जीवन का शाश्वत एवं जीवंत वर्णन किया गया है, जो आगे चलकर समाज, देश, काल एवं इतिहास में अपना प्रभुत्व स्थापित करता है। जो भावी पीढ़ी के लिए एक सबक है कि जब जब किसी राजा या शक्तिशाली व्यक्ति ने कर्म एवं समाज के पथ-प्रदर्शक गुरु का अपमान किया है, तब-तब आचार्य द्रोण और चाणक्य जैसे महामानव का प्रादुर्भाव हुआ है। जिसने ऐसे उद्दंड, स्वार्थी व्यक्ति से समाज और देश को मुक्ति दिलाई है। आचार्य श्री रामशरण शर्मा द्वारा रचित यह एक अनुपम कृति है।
काव्य का अंश….
भगवन! दें आशीष हमें कुछ, गुरु दक्षिणा करने भेंट।
ज्ञान यज्ञ पूर्णाहुति देवे, सारे संशय उर के भेंट।
सुनते गुरु गंभीर हो बोले, जो देने को प्रबल विचार।
तो पांचाल नरेश द्रुपद को, बंदी बला, दो हमें अबार।
यह सुनकर आवाक से रह गए, हाँ, कह चले तैयारी में।
लेकर बड़ी अक्षोहिणी सेना, प्रस्थित हुए सवारी में।
दुर्योधन संग कर्ण दु:शासन, विकर्णादि बांधव गण।
अपने अस्त्र-शस्त्र संजोये, बेगि सिधावे करने रण।
पांडव अनी थी पीछे चलती, सीम पहुँच विश्राम किया।
उधर कुरुदल नगरी घेरा, और विकट संग्राम किया।
अनायास रणभेदी सुनकर, जनता थर-थर काँप उठी।
कुरुदल सेना सागर जैसी, पग-पग नगरी ढाँप उठी।
सत्वर युद्ध की तैयारी हुई, द्रुपद क्रोध से लाल हुआ।
रण को धाया गर्जन करता, कुरुदल का ज्यों काल हुआ।
धरा गगन पट गया बाण से, अपने पराये बुझे न।
कहीं आर्तनाद, कहीं सिंहनाद, संग्राम घोर कछु सूझे न।
महाभटों के छक्के छूट गए, कुरु सेना भागी रण छोड़।
महारथी कुरुदल के जेते, दिए द्रुपद-शर माथे फोड़।
दुर्योधन और कर्णवीर के, मारे शर तीखे अष्टबीस।
तुरंग सारथी मार गिराए, भागे दोनों बचाकर शीश।
पांडु सुअन की देत दुहाई, कुरुसेनेा भगती आई।
देख दुर्दशा रणवीरों की, चले पांडु सुत हरषाई।
द्रोणाचार्य युधिष्ठिर दोनों, ठहरे रहे ठिकाने में।
शीश नाई दोऊ के सादर, चले बंधु जंग खाने में।
पूरे काव्य का आनंद ऑडियो की मदद से लीजिए…
लेबल:
कविता,
दिव्य दृष्टि
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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