शुक्रवार, 9 सितंबर 2016
अकबर-बीरबल की कहानी – 12
और क्या? कहानी का अंश…
एक दिन बीरबल को अपने किसी रिश्तेदार के यहाँ दावत में जाना था। इसलिए वह दरबार खत्म होने से पहले ही बादशाह से छुट्टी लेकर चले गए। दूसरे दिन जब बीरबल दरबार में हाजिर हुए तो बादशाह ने दावत के बारे में पूछा – खाना कैसा बना था और दावत में क्या-क्या था? बीरबल ने कई पकवानों के नाम बताए और वह आगे बता ही रहे थे कि बादशाह ने उन्हें किसी काम में उलझा दिया जिससे उनकी दावत का वर्णन अधूरा ही रह गया। यह बात हुए हफ्तों बीत गए। एकाएक बादशाह को याद आया कि उस दिन बीरबल ने दावत का वर्णन तो अधूरा ही छोड़ दिया था। यह याद आते ही उनकी स्मरणशक्ति की परीक्षा लेने के लिए उन्होंने पूछा – और क्या बीरबल?
बीरबल तत्काल समझ गए कि उस दिन दावत में बनी हुई चीजों के नाम बताते-बताते वह किसी दूसरे काम में उलझ गए थे, इसलिए वर्णन अधूरा रह गया था। बादशाह उसी वर्णन को पूरा करने की गरज से उनसे यह प्रश्न पूछ रहे हैं। यह विचार आते ही बीरबल ने फौरन ही उत्तर दिया – और क्या? कढ़ी। बीरबल की इतनी अच्छी स्मरणशक्ति से बादशाह प्रसन्न हुए और उन्होंने अपने गले से मोतियों की एक माला उतार कर उन्हें उपहार स्वरूप दी। उपस्थित दरबारी यह न समझ सके कि बादशाह ने बीरबल को किस बात को ईनाम दिया है? बस वे भी बादशाह से ईनाम चाहते थे। ईनाम के लालच में दरबारियों ने क्या किया? यह जानने के लिए ऑडियो की मदद लीजिए….
लेबल:
दिव्य दृष्टि,
बाल कहानी
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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