शुक्रवार, 30 सितंबर 2016
शिखण्डिनी का प्रतिशोध - 5 - राजेश्वर वशिष्ठ
कविता का अंश...
तिरस्कृत स्त्री की आँखों में,
नहीं होते आँसू।
भस्म हो चुके होते हैं उसके सारे स्वप्न,
हृदय में खौलता है गरम लावा,
और वह फट जाना चाहती है,
किसी ज्वालमुखी की तरह !
किसी अदृश्य चौराहे पर खड़ी है अम्बा,
जहाँ से कोई रास्ता नहीं जाता,
भविष्य और जीवन की ओर;
पर वह नहीं कर सकती मृत्यु का वरण,
क्योंकि वह समय के हाथों
छली गई है,
हारी नहीं है !
वह जानती है, शाल्व की तरह ही
अब उसे स्वीकार नहीं करेंगे,
उसके बन्धु-बान्धव,
और राजा विचित्रवीर्य भी,
सत्य है, ओस की एक बून्द,
फूल से टपकते ही,
बन जाती है कीचड़ का हिस्सा !
ढलती साँझ में, अम्बा शरण लेती है,
तपस्वियों के आश्रम में,
जिनका सुझाव है --
स्त्री के दो ही आश्रय होते हैं,
पिता या पति !
अम्बा नहीं लौटना चाहती काशी,
और अब उसे प्रतीत होता है,
पति तो उसके भाग्य में,
है ही नहीं,
पर वह क्षमा नहीं कर सकती,
अपने अपहर्ता भीष्म को !
आश्रम में अम्बा मिलती है,
अपने नाना ऋषि होत्रवाहन से,
जो उसे मिलवाते हैं,
जमद्ग्निनंदन परशुराम से,
सम्भव है भीष्म के गुरु परशुराम,
कर सकें भीष्म को विवश,
किसी सम्मानजनक व्यवस्था के लिए !
अम्बा की व्यथा से,
द्रवित होते हैं परशुराम।
करते हैं घोषणा –-
मैं भीष्म को आज्ञा दूँगा,
कि वह तुम्हें स्वीकारे कुरुवंश में।
अन्यथा उसे भस्म कर दूँगा मन्त्रियों सहित !
परशुराम, अम्बा और अनेक ब्रह्मज्ञानी ऋषि,
भीष्म से मिलने सरस्वती के किनारे,
पहुँचे हैं कुरुक्षेत्र !
भीष्म आदर के साथ करते हैं,
गुरुदेव का स्वागत और चरण-वन्दना।
आशीष देते हैं परशुराम
और बताते हैं अपने आगमन का निमित्त !
भीष्म, ब्रह्मचारी होकर भी तुमने स्पर्श किया है,
काशी नरेश की पुत्री अम्बा को;
अतः नष्ट हो गया इसका स्त्री-धर्म।
इसी आधार पर शाल्व ने किया है इसका तिरस्कार,
अब अग्नि की साक्षी में,
तुम करो इसे ग्रहण
या करे तुम्हारा भाई विचित्रवीर्य !
गुरुदेव, मैं तो आजन्म ब्रह्मचारी ही रहूँगा।
आप जानते हैं मैंने लिया है यह व्रत।
और अब विवाह तो विचित्रवीर्य से भी,
सम्भव नहीं अम्बा का,
क्योंकि इसका रहा है राजा शाल्व से प्रेम...
इस अधूरी कविता को पूरा सुनने के लिए ऑडियो की मदद लीजिए...
लेबल:
कविता,
दिव्य दृष्टि
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
Post Labels
- अतीत के झरोखे से
- अपनी खबर
- अभिमत
- आज का सच
- आलेख
- उपलब्धि
- कथा
- कविता
- कहानी
- गजल
- ग़ज़ल
- गीत
- चिंतन
- जिंदगी
- तिलक हॊली मनाएँ
- दिव्य दृष्टि
- दिव्य दृष्टि - कविता
- दिव्य दृष्टि - बाल रामकथा
- दीप पर्व
- दृष्टिकोण
- दोहे
- नाटक
- निबंध
- पर्यावरण
- प्रकृति
- प्रबंधन
- प्रेरक कथा
- प्रेरक कहानी
- प्रेरक प्रसंग
- फिल्म संसार
- फिल्मी गीत
- फीचर
- बच्चों का कोना
- बाल कहानी
- बाल कविता
- बाल कविताएँ
- बाल कहानी
- बालकविता
- भाषा की बात
- मानवता
- यात्रा वृतांत
- यात्रा संस्मरण
- रेडियो रूपक
- लघु कथा
- लघुकथा
- ललित निबंध
- लेख
- लोक कथा
- विज्ञान
- व्यंग्य
- व्यक्तित्व
- शब्द-यात्रा'
- श्रद्धांजलि
- संस्कृति
- सफलता का मार्ग
- साक्षात्कार
- सामयिक मुस्कान
- सिनेमा
- सियासत
- स्वास्थ्य
- हमारी भाषा
- हास्य व्यंग्य
- हिंदी दिवस विशेष
- हिंदी विशेष
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें