शुक्रवार, 2 सितंबर 2016
बाल कहानी - मीना की परी
कहानी का अंश…
मीना नाम की एक लडक़ी थी। वह पढ़ाई-लिखाई और घर के कामों में भी काफी होशियार थी। अपनी माँ को तो काम में मदद करती ही थी, साथ ही गाँव में भी सभी की मदद करती थी। शाला में भी वह सभी की सहायता करती थी। अपना गृहकार्य तो वह स्वयं करती ही थी, साथ ही यदि कोई पीछे छूट जाता तो उसका भी गृहकार्य वह कर देती थी। पड़ोस में रहने वाली राधा चाची यदि मीना को शक्कर लाने के लिए कहतीं, तो मीना झट तैयार हो जाती। पाठ मन ही मन याद करती जाती, कविता गुनगुनाती और चाची के लिए शक्कर भी ले आती। सारा गाँव उसे मेहनती मीना के नाम से पहचानता था। मीना शाला भी जाती, तो राह चलते लोगों से काम पूछती जाती। किसी का थैला पहुँचाना हो, किसी का कोई संदेश कहना हो, तो ये सारे काम मीना करती थी। मेहनती मीना सभी की प्यारी थी। मीना किसी को काम के लिए मना नहीं करती थी और गाँव में भी कोई उसे बिना काम बताए नहीं रहता था।
एक दिन दवाखाने से किसी के लिए दवाई पहुँचाने के कारण मीना को शाला में प्रार्थना में देर हो गई। उस दिन प्रार्थना भी मीना को ही गानी थी। हेड मास्टरजी ने मीना को डाँटा। मीना भी उदास हो गई। प्रार्थना पूरी होने के बाद मास्टरजी ने कहा - अगले महीने हम अपनी शाला में एक अच्छा कार्यक्रम करने वाले हैं। सभी को अपने हाथों से बने हुए मिट्टी के खिलौने और चित्र आदि लाने हैं। कोई दूसरी अच्छी चीज भी बना कर लाई जा सकती है। प्रतियोगिता होगी। जिसमें जिसकी चीज सबसे अच्छी होगी उसे इनाम दिया जाएगा।
शाला की छुट्टी होते ही सभी सोचने लगे कि क्या बनाया जाए- चित्र या खिलौना? खिलौना बनाएँ, तो किस चीज से? मीना ने भी सोचा। फिर उसे लगा कि मास्टरजी अपनी कहानी में जिस परी की बात करते हैं, क्यों न वैसी ही परी बनाई जाए! पंखों वाली, चमकीले कपड़े पहने हुए और अपने हाथ में सुनहरी छड़ी पकड़े हुए एक सुंदर परी!
दूसरे दिन मीना गाँव के कुम्हार के पास गई। भोला काका, मेरे लायक कुछ काम है क्या? लाओ, मैं आपके लिए मिट्टी अच्छी तरह से मिला देती हूँ। माटी मिलाते हुए मीना ने कहा- भोला काका, क्या आप मुझे मिट्टी की गुडिय़ा बनाना सिखाएँगे? भोला काका ने कहा- इसमें मुश्किल क्या है? चलो, हम दोनों मिलकर बनाते हैं। भोला काका की मदद से मीना ने एक मिट्टी की गुडिय़ा तैयार की। भोला काका ने कहा - ये सूख जाए, फिर इसे ले जाना। दो दिन के बाद मीना उस गुडिय़ा को ले आई। उस पर चूने से सफेद रंग किया। बाल काले किए। होठों को लाल किया और आँखों में भी काला रंग किया। अब उसे पहनाने के लिए कपड़े चाहिए।
मीना अब पहुँची दर्जी काका के पास। रघु काका, मेरे लायक कोई काम है क्या? रघु काका ने कहा - आज मैं बिलकुल फुरसत में हूँ। तुम्हारा कुछ काम हो तो बताओ। मीना ने थैले में से गुडिय़ा निकाली और कहा- मुझे इसके लिए सुंदर लहँगा-चुन्नी चाहिए। दर्जी काका ने अपने पास रखा कतरन का थैला खोला और उसमें से सफेद चमकीले कपड़े निकाले। गुडिय़ा का माप ले कर उसके लिए तुरंत कपड़े को आकार में काटा। मीना ने कहा- अब इसे सिलने का काम तो मैं ही करूँगी। मुझे सिलाई का काम आता है। छुट्टी के दिन सारा दिन उसने घर पर बैठ कर सिलाई की। उसके बाद उसने सफेद कार्डशीट से दो सुंदर पंख बनाए। उन्हें कांच की मदद से सजाया।
आगे क्या हुआ? यह जानने के लिए ऑडियो की मदद लीजिए…
लेबल:
दिव्य दृष्टि,
बाल कहानी
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
Post Labels
- अतीत के झरोखे से
- अपनी खबर
- अभिमत
- आज का सच
- आलेख
- उपलब्धि
- कथा
- कविता
- कहानी
- गजल
- ग़ज़ल
- गीत
- चिंतन
- जिंदगी
- तिलक हॊली मनाएँ
- दिव्य दृष्टि
- दिव्य दृष्टि - कविता
- दिव्य दृष्टि - बाल रामकथा
- दीप पर्व
- दृष्टिकोण
- दोहे
- नाटक
- निबंध
- पर्यावरण
- प्रकृति
- प्रबंधन
- प्रेरक कथा
- प्रेरक कहानी
- प्रेरक प्रसंग
- फिल्म संसार
- फिल्मी गीत
- फीचर
- बच्चों का कोना
- बाल कहानी
- बाल कविता
- बाल कविताएँ
- बाल कहानी
- बालकविता
- भाषा की बात
- मानवता
- यात्रा वृतांत
- यात्रा संस्मरण
- रेडियो रूपक
- लघु कथा
- लघुकथा
- ललित निबंध
- लेख
- लोक कथा
- विज्ञान
- व्यंग्य
- व्यक्तित्व
- शब्द-यात्रा'
- श्रद्धांजलि
- संस्कृति
- सफलता का मार्ग
- साक्षात्कार
- सामयिक मुस्कान
- सिनेमा
- सियासत
- स्वास्थ्य
- हमारी भाषा
- हास्य व्यंग्य
- हिंदी दिवस विशेष
- हिंदी विशेष
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें