सोमवार, 26 सितंबर 2016
ग़ज़लें - 2 - अनिरुद्ध सिंह सेंगर
ग़ज़ल...
हम क्या बताएं कैसे गुज़रती है जिन्दगी....
हम क्या बताएॅं कैसे गुज़रती है ज़िन्दगी,
खा-खा के ठोकरों को सँवरती है ज़िन्दगी।
पहरे बिठा रखे हैं ये मौसम ने हर तरफ,
उसको पता कहाँ कि बहकती है ज़िन्दगी।
दिल में तेरे छुपा है जो उसकी तलाशकर,
क्यों दर-व-दर सुकूॅं को भटकती है ज़िन्दगी।
जब से चलन दहेज का दुनिया में हो गया,
पीड़ा,घुटन के साथ सुलगती है ज़िन्दगी।
वो एक तितली फूल की गोदी में सो गई,
तब जाना उसने कैसे महकती है ज़िन्दगी।
उड़ते हैं जो ‘अनिरुद्ध’ ये आज़ाद परिन्दे,
मस्ती में रोज इनकी गुजरती है ज़िन्दगी।
ऐसी ही अन्य ग़ज़लों का आनंद ऑडियो की मदद से लीजिए...
सम्पर्क - aniruddhsengar03@gmail.com, sengar.anirudha@yahoo.com
लेबल:
ग़ज़ल,
दिव्य दृष्टि
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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Behad hee khubsurat Gazal,Bharti jee ki awaaz mi aur bhi sunder.
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