शुक्रवार, 16 सितंबर 2016
कविताएँ - राजेंद्र प्रताप सिंह‘गौतम’
कविता का अंश...
जिंदगी के पड़ाव....
वक्त के साये में बैठ, जिन्दगी के
गुजरे पड़ाव बस गिनते रहे।
साये बढ़ते रहे,पड़ाव घटते रहे ।
पकड़ना तो चाहा बहुत कुछ,
पर हाथ खाली के खाली रहे।
यादों के धुंधलके,झुरमुट में
हसीन खुशियों के पल ढ़ूँढ़ता हूँ
हॅंसने के लिए भले ही हो कम,
मुस्कुरा के कुछ पल जी लेता हूॅं।
उजली यादों को मेरे साथ चलने दो,
पता नहीं कब गली में शाम हो जाए।
दुआ करो आज की रात अच्छी गुजरे,
कल की कल फिर सोचा करेंगे।
वक्त के साये में बैठ, जिन्दगी के
गुजरे पड़ाव ही बस गिना करेंगे।
ऐसी ही भावपूर्ण कविता का आनंद ऑडियो की मदद से लीजिए...
लेबल:
कविता,
दिव्य दृष्टि
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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