शनिवार, 3 सितंबर 2016
बाल कहानी - जन्मदिन का तोहफा – आशीष त्रिवेदी
 
कहानी का अंश… 
नकुल ने अपना गुल्लक खोला और अपनी जमा पूंजी को गिना. अभी भी बहुत पैसे इकट्ठे करने हैं. पिछले तीन महीनों से वह पैसे बचा रहा था. आइसक्रीम चॉकलेट्स की अपनी इच्छा को दबाकर सारी पॉकेटमनी जमा कर देता था. इस बीच पड़े अपने जन्मदिन पर कपड़ों के लिए मिले पैसे भी उसने खर्च नहीं किए.
घर में सभी जानते थे कि वह पैसे बचा रहा है पर क्यों यह एक रहस्य था. वह किसी को कुछ नहीं बताता था. घर वाले यह सोच कर खुश थे कि इसी बहाने बचत की आदत पड़ रही है.
नकुल पढ़ने लिखने में बहुत होशियार था. सदैव अच्छे अंक लाता था. उसे यदि कोई टक्कर दे पाता था तो वह था उसका बेस्ट फ्रेंड संजीव. संजीव भी एक मेधावी छात्र था. नकुल और उसके बीच एक स्वस्थ प्रतियोगिता चलती थी कि देखें इस बार कौन कक्षा में प्रथम आता है. दोनों में आपस में बहुत प्रेम था.
हाँलाकि दोनों के परिवारों की आर्थिक स्थिति में बहुत फ़र्क था. नकुल के माता पिता दोनों बहुत अच्छा कमाते थे. उसके घर में किसी चीज़ की कमी नहीं थी. जबकि संजीव के पिता एक छोटी सी दुकान चलाते थे. घर में प्रायः पैसों का अभाव रहता था. संजीव पढ़ने में अच्छा था इसीलिए उसकी फीस माफ थी तथा उसे छात्रवृत्ति भी मिलती थी. इसी कारण उसकी पढ़ाई चल पा रही थी.
नकुल सोच रहा था कि अभी भी करीब डेढ़ हजार रुपये कम हैं उनकी व्यवस्था कैसे करूँ. बहुत सोचने पर भी कुछ सूझ नहीं रहा था. समय भी अधिक नहीं बचा था.
अगले दिन जब वह स्कूल गया तो पता चला कि स्कूल में फेट होने वाली है. इसमें छात्र अपनी स्टॉल लगा सकते हैं. स्कूल को निश्चित राशि देने के बाद जो लाभ होगा वह उस छात्र का होगा. नकुल को बची हुई राशि एकत्र करने का रास्ता सूझ गया.
नकुल एक अच्छा चित्रकार था. उसने कई पुरस्कार भी जीते थे. उसके पास वॉटरकलर से बनाए कई चित्र थे. आने वाले क्रिसमस व नए साल के लिए उसने कुछ कार्ड्स तथा चित्र और बना लिए. फेट में उसका स्टॉल सबके आकर्षण का केंद्र रहा. उसे अच्छा मुनाफा हुआ.
स्कूल टूर के लिए पैसे जमा करने के लिए अब दो ही दिन बचे थे. लगभग सभी लोग पैसा जमा करा चुके थे. संजीव के पिता के पास इतने पैसे नहीं थे अतः वह टूर पर नहीं जा रहा था.
नकुल संजीव के पिता को साथ लेकर क्लास टीचर से मिला और टूर के लिए पैसे जमा करा दिए. 
नकुल जानता था कि संजीव भी टूर पर जाना चाहता था लेकिन घर की आर्थिक स्थिति ठीक ना होने के कारण कुछ कह नहीं पा रहा था. नकुल भी अपने मित्र के बिना नहीं जाना चाहता था. अतः अब तक उसने भी पैसे जमा नहीं किए थे. वह स्वयं अपने मित्र की सहायता करना चाहता था. अतः पैसे बचा रहा था. पर्याप्त धन जमा हो जाने पर वह संजीव के पिता से मिला और उन्हें इस बात के लिए मना लिया कि वह संजीव के टूर के पैसे स्वयं देगा. अपने मम्मी पापा को जब उसने यह बात बताई तो उन्होंने भी उसका समर्थन किया. नकुल ने संजीव के पिता से कहा कि वह यह बात अभी उससे ना बताएं. सभी को 10 जनवरी को टूर पर निकलना था. उस दिन संजीव की सालगिरह थी. अतः अचानक उसे यह बात बता कर खुश कर देंगे. आगे क्या हुआ? यह जानने के लिए ऑडियो की मदद लीजिए… 
लेबल:
दिव्य दृष्टि,
बाल कहानी
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क: 
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022. 
ईमेल - 
parimalmahesh@gmail.com
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