शनिवार, 10 सितंबर 2016

ऐतिहासिक चरित्रों के जादूगर – जयराज – श्रीराम ताम्रकर

आलेख का अंश… सरोजिनी नायडू के भतीजे जयराज को उनके माता-पिता डॉक्टर बनाना चाहते थे, लेकिन अपनी स्नातक परीक्षा पूरी कर वे मुंबई आ गए। वर्ष 1928 में फिल्मों में प्रोडक्शन मैनेजर तथा सहायक कैमेरामैन की हैसियत से अपने कैरियर की शुरूआत की। जयराज का गठीला शरीर, बुलंद आवाज, सुदर्शन चेहरा तथा संवाद अदायगी में आत्मविश्वास देखकर उन्हें फिल्म ‘जगमगाती जवानी’ में हीरो बना दिया गया। वर्ष 1929 में उनकी दूसरी फिल्म ‘रसीली रानी’ पहली फिल्म से पहले प्रदर्शित हो गई। 1931 में उनकी पहली बोलती फिल्म आई- शिकार। इसके बाद शारदा फिल्म कम्पनी की फिल्म ‘महासागर नो मोती’ की टिकट खिड़की पर भारी सफलता ने उन्हें पहली कतार में लाकर खड़ा कर दिया। पृथ्वीराज कपूर, मोतीलाल, मास्टर विट्‌ठल, जाल मर्चेंट, डी. बिलिमोरिया जैसे नायकों का सितारा उन दिनों बुलंदी पर था। जयराज भी उनमें शामिल कर लिए गए। जयराज की जोड़ी तीस के दशक में जेबुन्निसा के साथ काफी लोकप्रिय हुई। 1942 में जब अशोक कुमार ने बॉम्बे टॉकीज छोड़ी तो देविका रानी ने फिल्म ‘हमारी बात’ में जयराज को नायक बनाया। फिल्मों में आवाज आ जाने के कारण उस समय नायक – नायिका को अपने गीत स्वयं गाने होते थे। जयराज ने उसके लिए गीत-संगीत का प्रशिक्षण भी लिया और अपने गीत खुद गाए। जयराज का फिल्मी कैरियर साठ साल लम्बा चला। उन्होंने इस अवधि में दो सौ से अधिक फिल्मों में नायक एवं चरित्र नायक के बहुआयामी रोल निभाए। ऐतिहासिक चरित्रों को परदे पर अनेक बार सजीव किया। इस मामले में उनके प्रतिद्वंद्वी रहे समकालीन कलाकार प्रदीप कुमार और भारत भूषण। ये उनके फिल्मी जीवन का सबसे शानदार दौर था। जयराज से जुड़ी हुई ऐसी ही अन्य रोचक जानकारी ऑडियो के माध्यम से प्राप्त कीजिए…

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